Thursday 19 January 2017

ठौर -ठिकाना

 ठौर -ठिकाना 
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आज दिन भर की भागदौड़ ने बुरी तरह थका दिया था मुझे . घर में घुसते ही पर्स बेड उछाल दिया और सीधे वाशरूम में घुस गई . देर तक गुनगुने पानी से शावर लेने से कुछ राहत मिली.हाउसकोट डाल कर गीले बाल झटकती हुई लाबी में आई तो मुझे देखते ही कमला कहने लगी " अरे दीदी आप सर से नहा ली अब तो ठंड पड़ने लगी है सर पकड़ लेगा तो परेशान हो जायेंगी " .
" तुम गर्मागर्म काफ़ी पिला दो बस कुछ नहीं होगा वो भईया इसबार जो काफ़ी सीड्स लाया था वही बनाना ".
" बस अभी लाई दीदी आपके आते ही हम भिगो दिए थे "
साढ़े आठ बज रहे थे मै बिस्तर पर ही पसर कर बैठ गई . सामने टीवी चल रहा था कुछ ख़ास नहीं था . विक्रम को दिल्ली गए हफ्ता भर हो गया था अभी पन्द्रह दिन और लगेंगे .बेटे के बगैर घर काटता है बस मै और कमला ही रह जाते है अकेले . आज बात भी नहीं हुई अभी डिनर के बाद करती हूँ . काफ़ी का मग ख़तम कर के साइड टेबल पर रखा ही था कि मेरे सेल फोन बजने की आवाज़ आई . उफ़ कहाँ रख दिया यहाँ तो दिख नहीं रहा है तभी कमला की आवाज़ आई . 
"
लो दीदी आप का फोन बज रहा है बाहर भूल आई थी डाईनिंग टेबिल पर ".
फोन आन करते ही दूसरी तरफ से विक्रम की आवाज़ आई .
"
माँ मैम को देखने चली जाइए प्लीज़ उनकी तबियत बहुत खराब है दोपहर से वंदना और मनोज का कई बार फोन आया आप जायेंगी न माँ " .
"
विक्की बेटू अभी ? अब तो नौ बजने वाले हैं कैंट दूर भी है क्या हुआ कोई इमरजेंसी है क्या " .
"
हां माँ कई क्लासमेट को फोन किया पर शायेद कोई पहुंचा नहीं अभी अभी फिर मनोज का फोन आया मैम की तबियत बिगड़ रही है उन्हें फीवर तेज़ है आप जैसा सोचो माँ " .
"
जाती हूँ तू परेशान न हो हाँ पूरा पता वाट्सएप पर या मैसेज से भेजो कुछ करती हूँ
मै वहां दो बार जा तो चुकी हूँ पर रास्ता मुझे याद नहीं .दरअसल गये हुये भी एक अरसा हो गया है .पहली बार विक्रम को कुछ सामान देना था रात के दस बजे थे मैम सो चुकी थी मै कार में ही बैठी रही वह दे कर जल्दी ही वापस आ गया . दूसरी बार भी रात हो गई थी बस कैंट का इलाका है यही समझ में आया गली का ध्यान ही नहीं दिया बेटे के साथ रास्तों का ध्यान ही नहीं रहता .बस इतना जरुर याद है सड़क के किनारे ही वह आश्रम हैं ,सामने चैनेल वाला बरामदा और पीछे एक हाल जिससे लगा हुआ बाथरूम जिसे महिलायें और पुरुष दोनों ही उपयोग करते हैं ,एक छोटा सा किचन भी है जहाँ बस थोडा बहुत चाय आदि बन सकती है .खाना तो दोनों ही समय टिफिन सर्विस से आता है जिसे किसी सेठ ने लगवा दिया है .
हाल में कुल आठ पलंग पड़ी है महिलाएं और पुरुष दोनों ही वहां समभाव से रहते हैं .उस समय भी चार पुरुष और चार ही औरतें थी कुल मिला कर फुल था वह आश्रम जगह ही बस इतने लोगों की है वहां .
वंदना और मनोज इस ओल्डहोम के मैनेजर या कहिये केयरटेकर हैं ,दोनों पति पत्नी बड़े प्रेम और अपनेपन से सबकी देखभाल करते हैं .
विक्की से उनका संपर्क बना रहता है उन्ही से वह अपनी मैम का हाल लेता रहता है .मुझे तो काफ़ी बाद में पता चला जब वह घर से मैम के लिये रोज़मर्रा की जरूरत का सामान उसने मुझसे माँगा .
" माँ कुछ चादरें पुराना तौलिया और आपका गाउन होगा ? हो तो निकाल दीजिये ''.
मैने उससे पूछा क्या करोगे किसके लिये ले जाओगे . बहुत पूछने पर उसने बताया उसके स्कूल की टीचर हैं जो इस हाल में आश्रम में पड़ी है .
एक धक्का सा लगा सुन कर कान्वेंट की टीचर इस हालत में 
मैने बेटे से कहा -
''वो तेरी गुरु है माँ समान है उन्हें अपना पुराना कपड़ा  कैसे दे सकते है कल बाजार से गाउन ले आउंगी अभी यह चादर वैगरह ले जाओ ''.
मिस सेन किसी को पहचानती ही नहीं विक्रम को भी नहीं . बताने पर ही याद करती है और थोड़ी देर बाद फिर भूल जाती है और पुरानी बात रटने लगती हैं . हम वहां बस दस पन्द्रह मिनट ही रुके विक्की को कुछ जल्दी थी लेकिन बस उतनी ही देर में वह चार पांच बार एक ही बात बोलती रहीं.
" आपका नाम क्या है ? बैठिये ... चाय मंगवाऊं आपके लिये ... अच्छा गर्म समोसे खायेंगी ? ". उनके पास एक रुपया भी नहीं था पर वह औपचारिकता नहीं भूली थी .
मुझे बहुत मानसिक पीड़ा हुई थी सोचा था अब हर हफ्ते जाउंगी पर बीमारी के कारण नहीं जा सकी कुछ लापरवाह भी हुई जिसकी आत्मग्लानि भी आज हो रही है .हालाकिं उनकी जरूरत का थोडा बहुत सामान विक्रम से भेजवा देती वैसे तो वह खुद नियम से जाता ही था . आज उनकी खराब हालत सुन कर मन विचलित हो रहा है .
रात हो रही थी पता नहीं लौटने में कितनी देर हो अब यह तो उनकी हालत पर ही निर्भर करता है . मैने ड्राइवर को रुकने को बोल दिया और विक्की ( विक्रम ) के मैसेज का इंतजार करने लगी . कमला से कुछ जरुरी सामान भी टावल , चादर , रबर की शीट , ग्लूकोज़ आदि जो भी उस समय ध्यान आया ले कर गाडी में बैठने को कहा . विक्की का मैसेज आते ही मैने घर लाक़ किया और  चल दी .
वृद्ध आश्रम खोजने में ज्यादा मुश्किल नहीं हुई , फिर भी पहुँचते पहुँचते नौ तो बज ही गए .
कैन्टोमेंट का इलाका वैसे भी कोई भीड़भाड़ वाला तो होता नहीं ज्यूँ ज्यूँ रात गहराती है सन्नाटा फैलता जाता है .
कमला और ड्राइवर तो साथ थे ही मुझे अपनी कोई चिंता नहीं थी पर सेन मैम की हालत के बारे में सोच कर बहुत चिंता हो रही थी . अब इतनी रात को डाक्टर कहाँ मिलेगा . मनोज को विक्रम ने कह तो दिया था किसी डाक्टर से बात कर ले . पता नहीं उसने बात की या नहीं इसी फ़िक्र में डूबते उतराते पहुँच गई  वहां  .
मै जल्दी से अंदर मैम के पास भागी . अंदर लोगबाग थे फिर भी एकदम ख़ामोशी थी . मैम बेड पर लेटी थी उनका हाथ छुआ बुखार बहुत तेज़ था
,चादर अस्तव्यस्त थी ठंड के मौसम के हिसाब से ओढने बिछाने के कपड़े चादर कंबल कम लग रहे थे .
मनोज और वंदना दोनों ही मेरे पास खड़े थे . मेरी आँखों में कौंधता सवाल वो दोनों भांप गये . वंदना ने कहा -

" मैडम क्या करें करीब पंद्रह दिन हो गये मिस सेन को बीमार पड़ें अभी तक तो फीवर आ रहा था सुबह शाम चढ़ जाता तो दिन में हल्का रहता कुछ थोडा बहुत खा पी भी लेती थी वह भी बहुत बहला फुसला कर . अब दो दिन से इन्हें डायरिया भी हो गया है . दिन भर बिस्तर खराब होता रहता है
,अब तो इन्हें बाथरूम भी बेड पर ही हो जा रही है " .

मनोज को ड्राइवर के साथ डाक्टर के पास भेज दिया था . आधे घंटे हो गये थे न वह आया न ही फोन से कुछ बताया . इधर मैम की हालत बिगडती ही जा रही थी . आँखे तो उन्होंने खोली ही नहीं थी बस नीमबेहोशी की हालत में पड़ी थी . उनका हाथ थाम कर सहलाती  तो कभी माथे का पसीना पोछती रमा जी बैठी थी .
बहुत खामोश बहुत उदास सी रमा बंसल जो मिस सेन से पांच छह साल छोटी है यही रहती है .
मै बार बार बेचैनी से दरवाजे की ओर देख रही थी अभी तक मनोज डाक्टर को लेकर नहीं आया . फोन किया तो पता चला कोई डाक्टर आने को तैयार ही नहीं
, वही लाकर दिखाने को कह रहे है . थोड़ी देर बाद वह वापस आ गया बस पेरासिटामोल की दो गोलियां ले कर कहने लगा -
" मैम दस बारह जगह गये एक भी डाक्टर आने को राजी नहीं हुआ यहाँ तक गली के नुक्कड़ पर बैठा कंपाउंडर जो आजकल डाक्टर साहब बना है उसने भी मना कर दिया जबकि वह मुझे पहचानता है अच्छी तरह जान रहा था कोई बुज़ुर्ग ही बीमार होगा . पता नहीं क्यों ऐसा कर रहें है हो सकता है रात ज्यादा हो गई है इसीलिए . पास वाले नर्सिंगहोम की डाक्टर मंजू आहुजा ने यह गोलियां दी और सुबह आने को कहा है ".
''अरे सुबह तक तो बहुत परेशानी हो जायेगी पता नहीं रात कटेगी भी या नहीं साँसे भी खर्र खर्र चल रही हैं .केवल बुखार ही होता तो भी चिंता कम होती साथ में डायरिया भी है शरीर शिथिल पड़ता जा रहा है अब  क्या  करें मनोज ? '' .
मुझे   बहुत  क्रोध  आया और  समझ  में  भी नहीं  आ  रहा  था  क्या  करें  . वहां सभी  परेशान  हो गए
फिर  सब ने बहुत सोचा अब हाथ पर हाथ रखे सुबह का इंतजार नहीं किया जा सकता कुछ तो करना ही होगा .
तुरंत   मेडिकल  स्टोर  से  क्रोसिन  मंगवाई  वह  कम  से  कम  बुखार  तो  उतार  देगी  रात  कट  जाये बस सुबह  तो  डाक्टर  आ  ही  जायेगी  .
क्रोसिन की गोली पानी में घोल कर चम्मच से पिला दी गई और माथे पर ठंडी पट्टी रखी गई  
,बीच बीच में चीनी नमक का घोल भी मुंह में डालते रहे .रमा जी लगातार बैठी पट्टी बदलती रही .
ग्यारह बारह बजने को आये पर उस रात सब बैठे रहे कोई नहीं सोया , भगत जी ,गुप्ता जी , रामलखन भईया , और किनारे वाली बेड के बाबू जी हों किसी ने कौर भी नहीं तोड़ा पहाड़ वाली अम्मा और दया माँ भी खामोश थी .सब के चेहरे पर चिंता झलक रही थी .
देर रात बुखार हल्का हुआ उन्होंने आँखे खोली तब लगा खतरा टल गया , ग्लूकोज़ के दो बिस्किट खिला कर उन्हें डायरिया की भी गोली दी गई . रात बहुत हो गई थी मनोज ने कहा अब आप घर जाइए हम दोनों ही आज यही रुकेंगे . दो चार घूंट चाय भी अपने सामने पिला कर हम करीब एक बजे घर वापस आ गये .आते समय मनोज ने कहा कल जल्दी आ जाइएगा सुबह ही तो डाक्टर मंजू आहुजा को बुला लायेंगे एक बार देख कर दवा दे देंगी तो तसल्ली रहेगी .
सभी आँखों में एक अनुरोध था कल जल्दी आइयेगा बिन संवाद के ही सब पढ़ने में आ रहा था मेरा कलेजा जैसे कचोट रहा हो इन आँखों की भाषा पढ़ कर इन चेहरों की लकीरों में पसरी हुई बेबसी देख कर काश इतना बस होता तो सब चुन लेती सारी उदासियों  को और डेढ़ इंच ही सही मुस्कान सज़ा देती इन चेहरों पर .
यह भरे पुरे परिवारों वाले चेहरे हैं इनमे माँ झलकती है कभी बहन यहाँ पिता भी है और बड़े भाई भी . यही परिवार है इन सबका कहने को कोई अनाथ नहीं सब का कोई न कोई है बेटे बहू ,लड़की दामाद ,नाती पोते सब है .पर नहीं है तो उनके घरों में इनके लिये कोई कोना नहीं है .यह अवांछित है .रिटायर्ड है घर की रद्दी और पुराने फर्नीचर की तरह . अगर इन्हें वह बेच सकते तो बेच देते कबाड़ी को .पर नहीं कर पाये वरना सब कुछ तो ले ही लिया अब इनको बेच कर भी चार पैसे खड़े कर लेते .
सोच कर भी ऐसे रिश्तों से वितृष्णा हो गई और मन भी आशंकित होने लगा . अगर जीवन की परणित यही है तो क्यूँ हम सन्तान की कामना करें , भाई बहनों की क्या जरूरत ? आखिर रहना तो यहीं है .वैराग्य सा होने लगा .
घर पहुँचते पहुँचते देर हो गई . कमला ने खाने को पूछा भी मना कर दिया मैने . 
सुबह जल्दी जाना भी था बस एक कप चाय पी कर सो गई .  इन्ही सब उलझनों में रात को नींद ही नहीं आई . सुबह आठ बजे ही मनोज का फोन आ गया उसे लग रहा था कहीं मै देर न कर दूँ आने में . तैयार हो कर मैने जल्दी जल्दी नाश्ते की खानापूरी की देर हो रही थी अभी रास्ते में मेडिकल शाप पर भी रुकना था एडल्ट डाइपर का पैकेट लेना था . नौ बजने से जरा पहले ही वहां पहुँच  गई रास्ते से ही मनोज को फोन कर डाक्टर को लेने भेज दिया था . मिस सेन का बुखार तो कम हो गया था पर अभी डायरिया नहीं रुका था टेबलेट दी तो थी रात में पर आराम कम था ,चेहरा एकदम जर्द पड़ा था . समझ में नहीं आ रहा था इनके जीवन के लिये प्राथना करूँ या इन्हें जीवन से मुक्त करने के लिये कितनी दुखद पीड़ादायक स्तिथि है यह .
मै फिर मनोज को फोन करने को सोच ही रही थी कि उसका फोन आ गया . मैने उससे पूछा ,
" क्या हुआ मनोज इतनी देर हो गई तुम डाक्टर को ले कर क्यूँ नहीं आये ? "

वह बोला " हम क्लिनिक में ही बैठे है आप से बात करना चाह रही हैं डाक्टर साहिबा लीजिये बात कर लीजिये "

" नमस्ते डाक्टर क्या हुआ आप आइये प्लीज़ मैम सेन की हालत ठीक नहीं आप इनका चेकअप कर के दवा दे देंगी तो ज्यादा अच्छा रहेगा "
उधर से लेडी डाक्टर ने जो कहा सुन कर बहुत अजीब लगा वह बोल रही थी

" मै आ तो जाउंगी पर पहले यह कन्फर्म करना चाह रही थे मेरी विजिट फीस कौन देगा सब बात क्लियर हो जाए तो ठीक वरना बाद में किचकिच होती है "


" आप आइये तो सही पहले मरीज़ को तो देखिये .. फीस के लिये मत परेशान होइए हम देंगे आपकी फीस " कह कर फोन काट दिया . मन में अजीब सी वितृष्णा हुई डाक्टर के प्रति .


" यह सेवा का संकल्प लेने वाले डाक्टर हैं या पेशेवर कसाई हैं . जरा भी दया धर्म नहीं है इनमें अरे इतना पैसा तो नर्सिंग होम से कमा ही रहीं है फिर भी इन बूढ़े बुजुर्गों के लिये वक्त नहीं निकाल सकती दवा न दें बस लिख भर दें पर नहीं यह तो अपना समय भी बेच रही हैं सारा पैसा यही से कमा लेंगी रात को भी नहीं आई जरा भी मन नहीं हौला अगर रातबिरात कुछ हो जाता तो ... पर इन्हें क्या इन्हें तो रोज़ ही साबका पड़ता होगा "


मन छोभ से भर गया था मै बडबडाती रही लोग चुप खड़े थे .अब मज़बूरी भी थी इनकी हालत ऐसी न थी कि कहीं ले जा सके इंतजार तो करना ही था .
थोड़ी देर बाद ही मनीष डाक्टर को ले कर आ गया साथ में एक असिटेंट भी थी वही मैम का फीवर और ब्लडप्रेशर ले रही थी डाक्टर साहिबा दो फीट दूर खड़ी रही उन्होंने कहने पर भी हाथ नहीं लगाया बस पर्चा लिखा और पैसे खरे किये और चल दी .

कुछ घरेलू नुस्खे , खान पान और देखभाल से धीमे धीमे हालत सुधरने लगी . मै रोज़ घंटे दो घंटे को जाती रही .उन्हें बहला फुसला कर दवा खिलाते कभी खाना खिलाते हुआ लगता मै अपने बच्चे को फिर से पाल रही हूँ . उन्हें चलने में परेशानी थी कुछ महीने पहले बाथरूम में फिसल जाने से कूल्हे की हड्डी में चोट आ गई थी वो ठीक भी हो गईं थी पर इस बार की बीमारी से इतनी कमजोर हो गईं कि उनके मन में डर बैठ गया बाथरूम खुद नहीं जाना चाहती ,बिस्तर खराब कर बच्चों की तरह मुंह छुपा कर पड़ी रहती .
रमा
जी भी कितना धोती चादरें वह चिड़चिड़ा जाती तो कभी प्यार से झिड़की देती अब उनकी भी तो उम्र हो गई है , डाइपर बहुत महंगे पड़ रहे थे फिर इनकी आदत भी पड़ती जा रही थी और ऐसे गीले में पड़े रहने से बेडसोर होने का  भी डर था .

मै सोच रही थी यह सच है हमारे बुज़ुर्ग जीते नहीं उन्हें जिंदा रखना पड़ता है नन्हे शिशुओं की तरह . मैने उनके लिये वाकर लाकर रखा और एक डब्बे में सबसे छोटी वाली कैडबरीज़ चाकलेट्स और उन्हें दिखा कर कहा -

''आप अपने आप बाथरूम जायेंगी तो आपको एक चाकलेट मिलेगी " .

उन्हें चाकलेट्स बहुत पसंद थी देखते ही बच्चों की तरह खुश हो गई आँखे चमक उठी धीरे धीरे वह वाकर ले कर बाथरूम जाने लगी और हर बार वापस आकर हाथ फैला देती लाओ मेरी चाकलेट .


अब सब कुछ सामन्य था मै अब हफ्ते में एक बार जाती बहुत चाह कर भी अधिक समय नहीं निकाल पाती कभी ड्राइवर की भी मुश्किल होती . इस बार घर पर काफ़ी व्यस्तता रहने के कारण पन्द्रह दिन तक नहीं जा पाये .


वैसे भी जब भी जाते कोशिश करते सब के लिये कुछ खाने पीने को ले जाएँ वह भी उनकी मनपसन्द चीज़ कभी ढोकला कभी समोसा आदि . और कोई पूछने पर भी नहीं बोलता बस मिस सेन को छोड़ कर वही बता देती क्या लाऊं . अब तो ठंड भी पड़ने लगी थी जनवरी लग गई थी मैने सब के लिये मोज़े टोपी पुलोवर आदि लिये साथ ही गरमागरम समोसे भी बंधवा लिया .


भगत जी को पुरुषों के कपड़े दे कर कहा -" दादा आप लोग अपनी अपनी पसंद से नाप कर ले लीजिये मै तो अंदाजे से ही लाई हूँ तब तक चाय मंगवाते है जल्दी करिएगा वरना समोसे ठंडे हो जायेंगे " .

कह कर मै महिलाओं के स्वेटर निकालने लगी .कुछ देर बाद पलट कर देखा तो भगत जी वही खड़े थे .
" क्या हुआ दादा आप खड़े क्यों हैं ? और सब चुप काहे हैं ? "

भगत जी कुछ नहीं बोले बस एक सेट कपड़ा मेरी तरफ बढ़ाया और बोले .

" इस की जरूरत अब नहीं है बिटिया " .


" अरे काहे दादा चार जन हैं न आप लोग " .


कह कर मैने पूरे हाल में नज़र घुमा कर सबको देखा सभी थे गुप्ता जी को छोड़ कर.


'' अरे गुप्ता अंकल नहीं है क्या उनका रख दीजिये जब आयें तो दे दीजियेगा ''.


लबें पतले गुप्ता जी बहुत कम बोलते थे उनके बारे में कभी उनसे बात तो नहीं की चाह कर भी उनका अतीत  कुरेदने की हिम्मत नहीं होती मेरी .जानती  हूँ  बहुत दर्द होता है जब सूखे घाव पर पड़ी पपड़ियाँ उधड़ती हैं  .
 उनकी बोलचाल हावभाव से वह अभिजात्य वर्ग से दीखते थे .
''अरे कहाँ चले गए क्या उनके बेटे उन्हें ले गये
? ''
मैने मनोज से पूछा .

" नहीं मैम एक बार यहाँ छोड़ने के बाद आजतक तो कोई बेटा बेटी अपने माँ बाप को लेने नहीं आया गुप्ता अंकल दस दिन पहले नहीं रहे उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ और तीसरे दिन वह मुक्त हो गए सब दुखों से " .

मै एक दम सन्न सी रह गई माहौल बड़ा बोझिल हो गया था .मैने और सब को सामान्य करने की कोशिश की चाय मंगाई और मैम सेन से बात करने लगी . थोड़ी देर बाद जब सब लोग शाम की चाय में व्यस्त हुए तो मै वंदना और मनोज के साथ अपनी चाय ले कर बाहर वाले बरामदे में आ गई .
मुझे गुप्ता अंकल के बारे में जानना था .अब वह तो दुनिया से चले गए पर मै जानना चाहती थी संतान किस हद तक पतित हो सकती है .


मनोज ने बताया गुप्ता जी किसी प्राइवेट कम्पनी में ऊँचे पद पर थे उनके दो बेटे और एक बेटी भी है एक बेटा विदेश में अच्छा कमा रहा है दूसरा स्टेट बैंक में मैनेजर है .
उनकी अच्छी खासी सम्पति भी थी पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने मकान छोड़ कर बाकी संपत्ति दोनों बेटों के नाम कर दी .घर पर वह अकेले ही रहते थे पत्नी का संवारा घर था वहां वह अकेलापन नहीं महसूस करते उन्हें लगता उनकी सहधर्मिणी उनके आसपास ही है . बेटी उनकी बहुत लाड़ली थी वह अक्सर उनके पास आ जाती बेटी के मोह में पिता ने घर उसके नाम कर दिया उन्होंने सोचा जब तक जियेंगे यह  छत तो है ही उसके बाद बिटिया माँ की हर धरोहर संभाल लेगी बहुओं को तो मोह होता नहीं फिर बेटों को उनका हक दे भी दिया है और उन्हें कोई कमी भी नहीं है .
प्राइवेट फर्म में होने के कारण उन्हें कोई पेंशन तो  मिलती नहीं थी . रिटायरमेंट के समय जो एकमुश्त रकम मिली भी  थी वह दोनों बेटों ने अपनी  जरूरतें बता  कर  मांग ली  और  कहा हम हर  महीने पैसे जमा कराते रहेंगे . अब  दोनों बेटे महीने में एक निश्चित रकम उनके खाते में जमा करा देते पर बेटी को मकान देने से वह दोनों भी नाराज़ हो गए और सब बंद कर दिया .
अब वह पूरी तरह से बेटी दामाद पर ही निर्भर हो गये .कुछ दिन बाद बेटी
 दमाद ने मकान भी  बेंच  दिया  और  फिर कुछ दिनों बाद  बेटी  नें अपने पति और ससुराल का हवाला देते हुए बाप को यहाँ आश्रम में छोड़ दिया .
 शुरू में महीने में एक चक्कर लगा भी जाती बाद में वह भी बंद कर दिया . गुप्ता अंकल कभी कभी बेटी से मिलने जाते पर लौट कर अक्सर ही फूट फूट कर रोते हफ़्तों उदास रहते . उनकी एक चूक ने उन्हें लावारिस बना दिया .पैसा नहीं तो रिश्ते नाते नहीं अपना ही खून सफेद हो गया .उनके मरने की खबर सुन कर लड़के आये तो पर यही पर खानापूर्ति कर चले गए .



गुप्ता अंकल की कहानी तो खतम हो गई ,मुक्त हो गये वह इस बेरहम दुनिया से ,लेकिन यहाँ तो सभी एक से हैं सभी के पास दर्द की एक पोटली है जिसे वह अपने कलेज़े में दबा छुपा के रखते हैं . 
कभी कभी पीड़ा जब असहनीय हो जाती है तो आंसूओं के साथ कुछ दर्द बह भी आते हैं पोटली से बाहर बस उतना ही जान पाते हैं हम  सब .
कितने बेरहम और बेशर्म हो गये हैं खून के रिश्ते . भाई बहन हो या संतान सब स्वार्थी यह यहीं आकर दिख जाता है .
सबसे बड़ा उदाहरण तो रमा आंटी ही हैं
, अरबपति परिवार की लड़की शादी के दस दिनों बाद ही माँ बाप के घर वापस आ गई ,फिर पति कभी उन्हें न लेने आया न ही मिलने , बाद में तलाक का कागज़ आ गया कुछ दिनों बाद पता चला उसने अपनी प्रेमिका से विवाह कर लिया . रमा जी मायके में ही रह गई , माँ बाप की लाख कोशिशों और समझाने के बावजूद दूसरा विवाह नहीं किया . भय और अविश्वास बैठ गया उनके मन में अस्वीकृत होने का वह भी बिना किसी अपराध के . जब तक माँ बाप जीवित रहे बड़े लाड़ प्यार से रखा उन्होंने पर उनके जाने के बाद अपने ही मायके में भाईयों और  भाभियों के बीच रमा आंटी पराई होने लगी उम्र बढ़ने के साथ शरीर भी शिथिल होने लगा घर के काम भी अब उनसे नहीं होते . बोझ सी हो गई वह एक अनचाहा बोझ . रमा आंटी की मनस्तिथि भी अजीबोगरीब हो गई थी वह बार बार हाथ धोती दिन में कई बार नहा आती , घंटो पूजा पाठ करती और घर के कोने में बनी कोठरी में पड़ी रहती .लेकिन भतीजों की शादी के बाद तो वह अपनों के लिये भी अवांछित भी हो गई . और फिर एक दिन उन्हें यहाँ पटक दिया गया यह कह कर यह झगड़ा बहुत करती हैं हम तो इन्हें रखना चाहते हैं परंतु यह खुद ही यहाँ आने कि जिद कर रही हैं .अब दो तीन साल से यहीं हैं . जब जाओ बड़े प्यार से मिलती हैं .कभी कभी खुद ही बताने लगती हैं अपने परिवार के बारे में पर कभी बुराई नहीं करती .

 सिर्फ रमा आंटी ही नहीं यहाँ रहने वाला कोई भी सदस्य कभी अपनों के बारे में कुछ नहीं कहता लेकिन उनकी पीड़ा उनके मौन में , उनकी आँखों में साफ़ झलकती उन आँखों कभी न आने वालों का इंतजार दिखता .

दया माँ को उनके नाती यहाँ छोड़ गये , बेटी दामाद की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद जिन दो नन्हे बच्चों को कलेज़े से लगा कर पाला था , अपने बुढापे के लिये संजोई सारी पूंजी और पति का बनवाया घर बेंच कर जिन्हें पढाया लिखाया शादी ब्याह किया . उन्होंने ही नानी को ओल्डहोम में पहुंचा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जब की वह  समर्थ  थे अच्छी  नौकरी कर  रहे थे  तब से वह यहीं हैं .
भगत जी , रामलखन भईया ,बाबू जी सब कि कहानी एक सी ही है किसी को बेटे ने ठगा तो किसी को बेटी दमाद नें , अब जब अपना खून ही सफेद हो जाये तो क्या शिकवा क्या शिकायत ....
बस आँखों में पीड़ा का समंदर और होठों पर मौन का ताला , दिखती है तो बस खोखली हंसी .

 वापस घर आते समय रास्ते भर सोचती रही कितने अजीब हैं यह रिश्ते जो इतनी जल्दी रंग बदल लेते हैं माँ बाप अपने बच्चों की ऊँगली में चुभी फांस भी नहीं सहन कर पाते ,खुद परेशानी सह कर औलाद को हर सुविधा मुहैया कराते हैं ,वही उनके लिये अनचाहा बोझ हो जाते हैं , जब तक माल है तभी तक मुहब्बत है .
अपने काम और घर की आपाधापी में पन्द्रह दिन से उस तरफ जा नहीं सकी बस मनोज से फोन पर हाल लेती रहती , मैम सेन भी ठीक ही थी बस रात को अक्सर बिस्तर गीला कर देती रमा आंटी और दया अम्मा उसे धोती साफ़ करती कभी कभी झिड़की भी देती पर उनसे प्रेम भी करती .
वरना क्यूँ करती पेशाब से भरे  बिस्तर और कपड़ों  की रोज़  धुलाई  . अब उनकी भी उम्र है हाथ पाँव नहीं चलते पर वह कभी मिस सेन को गंदगी में नहीं रहने देती .

आज  वंदना का फोन आया था मैने उससे कल आने को कह दिया  उससे पूछा भी  -

'' कुछ लाना हो तो बता दो कल लेती आउंगी ''


वंदना ने कहा -
'' क्या बताऊँ दीदी मैम दो तीन दिनों से बिस्तर पर ही लैट्रिन भी कर देती हैं पर सबसे बड़ी समस्या यह है हाथ से निकाल कर पोत लेती है शरीर पर , पलंग के आसपास फेंक देती है सबसे बड़ी समस्या बिस्तर धोने की है ,आप अगर पाउडर वाला निरमा साबुन ला दें तो कुछ आसानी हो जाये ,और हाँ कुछ पुरानी सूती धोतियाँ भी ले आइयेगा .''


'' ठीक है हम कल ही ले कर आते हैं .'' कह कर मैने फोन रख दिया और सोचने लगे अब यह तो बड़ी परेशानी है , कब तक रमा आंटी और दया अम्मा करेंगी यह टट्टी पेशाब की सफाई अब यह दोनों भी तो बूढी हैं सत्तर अस्सी के बीच होगी इन दोनों की भी उम्र इस समस्या का कोई हल समझ में नहीं आ रहा था . कैसे वक्त और हालत इंसान को क्या से क्या बना देते है इसका सबसे बड़ा उदहारण मैम सेन हैं .
शहर के प्रतिष्ठित मिशनरी कान्वेंट स्कूल की टीचर और इस हालत में सोच कर देख कर रूह काँप जाती है , मुझे याद है कालर वाली शर्ट और घुटनों तक लम्बी स्कर्ट पहने डायना कट  शार्ट हेयर में मिस सेन अपने समय कि बेहद हसीन शख्सियत थी , मिस सेन ने शादी नहीं की थी कोई कहता छोटे भाई की ज़िम्मेदारी निभाने के लिये नहीं किया तो कोई यह भी कहता मिस सेन को प्रेम में धोखा मिला और शादी से विरक्ति हो गई .

सुनने में तो यही आया रिटायरमेंट के बाद जो भी पैसा मिला उसे अधिक ब्याज की चाह में प्राइवेट बैंक में जमा करने की भारी भूल कर दी इन्होने और कुछ साल बाद बैंक पैसा ले कर भाग गया . पैसा तो गया ही साथ में रिश्ते भी दूर हो गये अब तक बैंक से आने वाले ब्याज से मौज करने वाला भाई ने भी आँखे फेर ली यह कह कर अपना ही खर्च नहीं चलता इनका क्या करें .
पैसे जाने का सदमा तो लगा ही उसे तो झेल भी जाती पर जिस भाई के लिये सारी उम्र दी उसके बदले व्यवहार नें बहुत गहरा मानसिक आघात दिया .दिन दिन भर वह सड़कों पर घूमा करती कभी पार्क में ही पड़ी रहती कोई कुछ पकड़ा देता तो खा लेती . एक दिन सड़क पर भटकते हुये देख कर उनके किसी स्टूडेंट उन्हें पहचाना , वह किसी को पहचान नहीं पा रही थी यहाँ तक अपना नाम भी भूल गई थी .मैम सेन के पढाये उन बच्चों ने उन्हें यहाँ लाकर रखा .अब भी वह सब उनका हाल पता करते रहते हैं जब भी शहर में आते अपनी टीचर से मिलने जरुर आते हैं . तब से यह यहीं इसी ओल्ड होम में है .

 मुझे नींद नहीं आ रही थी बार बार मन में आश्रम में रह रहे चेहरे कौंधते .मैम सेन की दिन प्रतिदिन बिगड़ती हालत से मन में भय और चिंता बैठ रही थी . यह प्रश्न भी मन में उठता जितना यहाँ सब इनकी सेवा कर रहे हैं क्या घर पर भी कोई करता ? नहीं शायेद नहीं वहां रिश्तों के स्वार्थ थे जिन्होंने पीछा छुड़ा लिया यहाँ कोई रिश्ता नहीं पर सब एक दूसरे को संभाल रहें है .
भगत जी ,बाबू जी , रामलखन भईया सभी बड़े प्रेम से उनका ध्यान रखते कोई उनके  खाने के बर्तन साफ़ कर देता तो कोई झाड़ू लगा देता ,उन्हें दवा कब खानी है सब ध्यान रखते एक परिवार ही तो है यहाँ तभी तो दया अम्मा और रमा आंटी दोनों मैम सेन के टट्टी पेशाब से सने बिस्तर कपड़े बिना नाक भौह सिकोड़े धोती हैं . अक्सर ही मिस सेन बीमार पड़ती तो बिस्तर खराब करती ही है . एक बार दया अम्मा मिस सेन को प्रेम से झिड़कते हुए बोली -
''
अब से बिस्तर खराब किया तो नहीं साफ़ करेंगे पड़ी रहना .अगर तुम हमको आवाज़ दे दो तो हम दोनों तुम्हे सहारा दे कर बाथरूम में ले न जाएँ ''
मै अम्मा की तरफ मुंह करके उनकी बातें सुन रही थी तभी अम्मा ने आँख से मिस सेन की तरफ इशारा किया मैने पलट कर देखा तो मैम सेन अपना चेहरा तकिये में छुपाने की कोशिश कर रही थी .
''
देखो बेटा अब कैसे शर्मा रही हैं '' रमा आंटी हंस कर बोली और स्नेह से उनका माथा सहला दिया .फिर कहने लगी
''
क्या पता कौन जाने हम भी तो कभी ऐसे ही बीमार पड़ सकते हैं तो वैसे ही यह भी है एकदुसरे का हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ".
यही सब सोचते सोचते न जाने कब आँख लग गई . सुबह उठी तो सर भारी था चाय के साथ दो बिस्किट ले कर डिस्प्रिन ली अभी जाना भी था . मन में अजीबोगरीब ख्याल आ रहे थे . दोपहर तक कुछ तबियत ठीक हुई तो बाज़ार से सामान लेते हुये मै वहां पहुंची . गाड़ी की आवाज़ सुनते ही दया अम्मा बाहर आ गई . मुझे देखते ही बोली --
''
आ गईं बिटिया आज इसकी तबियत ठीक नहीं लग रही आज रात भर सभी लोग जागते रहे '' .
''
अरे क्या हो गया ? कल तो कुछ सुधर रही थी तबियत '' .
मैने पूछा और अंदर आ गई तभी मनोज ने बताया -
''सुबह बड़ी मुश्किल से कुछ खिला कर दवा दी है अभी अभी झपकी लगी है रात कई दस्त हो गये बुखार भी हो गया था पर अभी ठीक हैं तभी सो गईं '' .
'' इन्हें सोने दो और तुम लोग भी आराम कर लो ''
मैने वंदना और मनोज से कहा और कुछ देर वहां बैठ कर मै वापस आ गई .
रात को नौ बजे फोन कर के हालचाल लिया अब वह काफी ठीक थी जान कर निश्चिन्त हो गई . अगले दिन शाम चार बजे जब मनोज का फोन आया तो मै रास्ते में ही थी वहीँ जा रही थी -
''
दीदी मैम सेन नहीं रहीं आप आयेंगी न ? ''
''
अरे कब कैसे हुआ कल तो काफी ठीक थी फिर अचानक '' मैने पूछा .
'' आज सुबह भी काफी ठीक थी सुबह हल्का सा नाश्ता भी किया दवा भी ली और सब लोग उन्हें छेड़ भी रहे थे -- नाटक करती हैं देखो ठीक हैं सब हंस बोल रहे थे वह भी मुस्करा रही थी फिर सो गई दोपहर को बारह बजे करीब खाने को उन्हें जगाया तो उठी ही नहीं सोई रह गईं - आप आ रही है न अभी एक घंटे में उन्हें ले जायेंगे '' .
'' मै आ रही हूँ बस रास्ते में हूँ '' .
मन भारी हो गया विक्की को फोन कर के बता दिया उसकी मैम सेन मुक्त हो गईं इस स्वार्थी दुनिया से . अब कोई और सामान तो लेना नहीं था बस कुछ फूल लिये उन्हें आखिरी बार मिलने के लिये ,उन्हें विदा करके वापस आने लगी तो कई जोड़ी नम आँखे मेरी तरफ देख रहीं थी कार में बैठने लगी तो अम्मा ने हाथ पकड़ लिया और बोली -
''
हमसे मिलने आती रहना बिटिया ''
''
हम जरुर आयेंगे अम्मा आप सब हमारे अपने ही हो कभी याद आये तो मनोज के फोन से बात कर लेना माँ कुछ चाहिये तो भी बता देना अपनी इस बेटी को '' .
दस पन्द्रह दिनों के लिए मुझे शहर से बाहर जाना पड़ा वापस लौट कर एक दिन थोडा बहुत खाने पीने का सामान ले कर मै वहां गई सोचा बिना फोन किये ही अचानक जाउंगी . पहुँच कर गाड़ी से उतरी ही थी सामने भगत जी हाथ जोड़े खड़े मिले .गाड़ी की आवाज़ सुन कर रमा आंटी बाहर आ गई कुछ लोग आ गये कुछ बाहर आ रहे थे सब बहुत खुश थे मुझे वहां पा कर शायेद उन्हें लगा था मै अब नहीं आउंगी मै सिर्फ मैम सेन के लिए ही वहां आती थी . इन सब की आँखों में ख़ुशी की चमक ने मुझे क्या कुछ दिया मै बता नहीं सकती . रमा आंटी मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले आईं भगत जी प्लास्टिक की कुर्सी ले आये .
''
बैठो बिटिया '' . सभी आसपास घेर कर बैठ गये
अचानक मेरी निगाह मैम सेन की पलंग की तरफ गई तो मै चौंक कर खड़ी हो गई
वहां गले तक चादर ओढ़े कोई लेटा था बड़ी बड़ी हल्की भूरी आँखे और सफ़ेद कटे हुये बाल ,मैने मनोज की तरफ देखा तो वह समझ गया और बोला .
'' यह पुष्पा मलिक हैं इनका बेटा इन्हें यहाँ पहुंचा कर विदेश चला गया ''
अभी बहुत कम बात करती हैं धीरे धीरे सब से घुलमिल जायेंगी अभी सदमा सा लगा है इन्हें कुछ वक्त लगेगा एडजेस्ट होने में '' .
मैने पूछा -- ''क्या कब आईं यह क्या जल्दी ही ?''
'' नहीं अभी नहीं यह तो मैम के जाने के अगले ही दिन आ गईं थी
यहाँ कभी कोई जगह एक दो दिन से ज्यादा खाली नहीं रहती '' .
मै कुछ देर बाद वापस लौट आई पर आज भी मेरे दिमाग में मनोज का वाक्य
हथौड़े की तरह लगता है -
(
यहाँ कभी कोई जगह एक दो दिन से ज्यादा खाली नहीं रहती )
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दिव्या शुक्ला !
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