हूक
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आज मेरी सुबह कुछ जल्दी हो गई कुछ देर बाहर लान में टहलती रही फिर चाय की तलब लग आई अख़बार अभी आया नहीं था ,सोचा चाय बना लूँ तब तक आ ही जायेगा , अभी सब सो रहे थे एक कप चाय बना कर मै लान में ही चली आई ,अब तक अख़बार आ गया था ,उठा कर मै सरसरी निगाह से खास खबरें देखने लगी , हेड लाइंस देखने के बाद पेपर पलटा तो अंदर के पन्ने पर छपी खबर पर निगाह रुक गई धक से हो गया दिल ---
यह खबर पढ़ कर दो बरस पहले की सारी बातें चलचित्र सी घूम गई ----
दो बरस पहले की तो बात है अचानक माँ की बहुत याद आई और मैने मायके जाने की जिद कर ली माँ से मिले बहुत दिन हो भी गया था ,टिकट नहीं कन्फर्म हुआ तो मै बाई रोड ही चल दी ---सफर लंबा था कभी किताब पढ़ती तो कभी साथ साथ भागते पेड़ों को निहारती फिर सोचती जिंदगी भी तो भाग रही है उतार चढ़ाव भरे इन रास्तों पर सच ही तो है ,ऐसे ही जिंदगी के रास्ते भी सीधे नहीं होते , टेढ़े मेढ़े हो कर कभी संकरे हो जाते है तो कभी बहुत सहल जिसके हिस्से जो आये , हम सब को उन्ही से होकर गुजरना पड़ता है ! न जाने किस उधेड़बुन में उलझा रहा मन कि पता ही न चला इतना लंबा सफर कैसे कट गया कब समय बीत गया गया अब बस पहुँच ही गये थे ,एक लम्बे अरसे बाद मायके जा रही थी !ड्राइवर से पहले से कह रखा था जैसे ही जिले की चौहद्दी छूना मुझे बता देना , एक एक जगह देखनी थी अपना बचपन खोजना जो था जो यही कहीं छोड़ गई थी ,और कितना कुछ आँखों में कैद करना था जो बाकी दिनों के लिए संबल होगा ,पता नहीं अब फिर कब आना हो -- शहर में गाडी घुसते ही पीठ सीधे कर के बैठ गई चौदह साल का लम्बा अरसा बीत गया था,कितना कुछ बदल गया होगा ? पर कुछ भी तो नहीं बदला वही सड़कें वही गलियां उसी सिन्धी चौराहे पर चाय की वैसी ही छोटी सी दूकान ,जहाँ पहले की तरह ही मिटटी के कुल्ल्हड़ में चाय सुड़कते ठहाके लगाते चार पांच वकील जिनके काले कोट का रंग भी धूसर पड़ गया था , उनके पीछे निरीह सा खड़ा मोवक्किल जो शायेद सोच रहा था न जाने कितने का बिल होगा वकील साहेब तो अपनी अंटी ढीली करने से रहे मन ही मन सोचते हुए मुस्करा रही थी मै ! , फुटपाथ पर सब्जी की छोटी छोटी ढेरी लगाये पास के गाँव के छोटे खेतिहर किसान जो रोज अपनी भाजी तरकारी बेच कर ही चुल्हा बारते है ग्राहकों से मोलभाव में व्यस्त हैं ,पुरानी दीवानी के चौराहे पर सौ साल का इमली का बूढा पेड़ अभी भी तना था ,पर पन्द्रह साल पहले के जवान चेहरों की त्वचा पकी और बाल खिचड़ी नजर आये ,चड्डा आंटी का बेटा जैसे चड्डा अंकल में तब्दील होता जा रहा था ! चेहरे बदल रहे थे पर शहर नहीं रास्ते सड़कें सब वैसी उसी तरह जैसा मै इन्हें छोड़ गई थी -----
आज मेरी सुबह कुछ जल्दी हो गई कुछ देर बाहर लान में टहलती रही फिर चाय की तलब लग आई अख़बार अभी आया नहीं था ,सोचा चाय बना लूँ तब तक आ ही जायेगा , अभी सब सो रहे थे एक कप चाय बना कर मै लान में ही चली आई ,अब तक अख़बार आ गया था ,उठा कर मै सरसरी निगाह से खास खबरें देखने लगी , हेड लाइंस देखने के बाद पेपर पलटा तो अंदर के पन्ने पर छपी खबर पर निगाह रुक गई धक से हो गया दिल ---
यह खबर पढ़ कर दो बरस पहले की सारी बातें चलचित्र सी घूम गई ----
दो बरस पहले की तो बात है अचानक माँ की बहुत याद आई और मैने मायके जाने की जिद कर ली माँ से मिले बहुत दिन हो भी गया था ,टिकट नहीं कन्फर्म हुआ तो मै बाई रोड ही चल दी ---सफर लंबा था कभी किताब पढ़ती तो कभी साथ साथ भागते पेड़ों को निहारती फिर सोचती जिंदगी भी तो भाग रही है उतार चढ़ाव भरे इन रास्तों पर सच ही तो है ,ऐसे ही जिंदगी के रास्ते भी सीधे नहीं होते , टेढ़े मेढ़े हो कर कभी संकरे हो जाते है तो कभी बहुत सहल जिसके हिस्से जो आये , हम सब को उन्ही से होकर गुजरना पड़ता है ! न जाने किस उधेड़बुन में उलझा रहा मन कि पता ही न चला इतना लंबा सफर कैसे कट गया कब समय बीत गया गया अब बस पहुँच ही गये थे ,एक लम्बे अरसे बाद मायके जा रही थी !ड्राइवर से पहले से कह रखा था जैसे ही जिले की चौहद्दी छूना मुझे बता देना , एक एक जगह देखनी थी अपना बचपन खोजना जो था जो यही कहीं छोड़ गई थी ,और कितना कुछ आँखों में कैद करना था जो बाकी दिनों के लिए संबल होगा ,पता नहीं अब फिर कब आना हो -- शहर में गाडी घुसते ही पीठ सीधे कर के बैठ गई चौदह साल का लम्बा अरसा बीत गया था,कितना कुछ बदल गया होगा ? पर कुछ भी तो नहीं बदला वही सड़कें वही गलियां उसी सिन्धी चौराहे पर चाय की वैसी ही छोटी सी दूकान ,जहाँ पहले की तरह ही मिटटी के कुल्ल्हड़ में चाय सुड़कते ठहाके लगाते चार पांच वकील जिनके काले कोट का रंग भी धूसर पड़ गया था , उनके पीछे निरीह सा खड़ा मोवक्किल जो शायेद सोच रहा था न जाने कितने का बिल होगा वकील साहेब तो अपनी अंटी ढीली करने से रहे मन ही मन सोचते हुए मुस्करा रही थी मै ! , फुटपाथ पर सब्जी की छोटी छोटी ढेरी लगाये पास के गाँव के छोटे खेतिहर किसान जो रोज अपनी भाजी तरकारी बेच कर ही चुल्हा बारते है ग्राहकों से मोलभाव में व्यस्त हैं ,पुरानी दीवानी के चौराहे पर सौ साल का इमली का बूढा पेड़ अभी भी तना था ,पर पन्द्रह साल पहले के जवान चेहरों की त्वचा पकी और बाल खिचड़ी नजर आये ,चड्डा आंटी का बेटा जैसे चड्डा अंकल में तब्दील होता जा रहा था ! चेहरे बदल रहे थे पर शहर नहीं रास्ते सड़कें सब वैसी उसी तरह जैसा मै इन्हें छोड़ गई थी -----
ये
शहर इसके रास्ते कैसे भूलते मुझे यहाँ इस शहर में मेरी नाल जो गड़ी है नानी कहती थी
जहाँ नाल गड़ी हो वो जगह बार बार बुलाती है एक अजीब सा खिचाव होता है वहां ,फिर यह तो मायका है माँ और
मायका एक दुसरे के पूरक है ,जब तक माँ है
मायके का मोह अधिक रहता है ,मेरे स्कूल से
लेकर कालेज तक के स्वर्णिम दिन यही तो गुज़रे है , वो सब कुछ याद करती जा रही थी और
मन भीगता जा रहा था ,अचानक कुछ देख कर चौंक उठी
" जरा गाडी एकदम धीरे कर दो " ड्राइवर से कहा और उसके पास आने का इंतजार
करने लगी वो पास आ गई घुटनों तक ऊँची स्कर्ट और टाप पहने शुक्र है मोज़े घुटनों तक
थे खूब ढेर सारा मेकअप थोपे ,कंधे पर पर्स लटकाए , ऊँची एडी की सैडिल पहने टक
टक करती चली आ रही वो लड़की बिमला ही थी ....
लड़की
क्या वह पैंतीस साल की भरी पूरी औरत ही तो थी , शायेद अभी तक विवाह नहीं
किया था ,अचानक उसकी नजर मुझ पर पड़ी
कुछ देर पलक झपकती रही फिर चहक उठी -" अरे नीरू जिज्जी
कब आई हमको अब खबर भी नहीं करती आने जाने की जब अम्मा नहीं रही आप भी रिश्ता तोड़
ली न ? " -- " अरे नहीं हम तो अभी बस आये
है अभी तो घर भी नहीं पहुंचे तुम्हे देखा तो गाडी रोक ली " --- अभी आप रहेंगी
न आपसे ढेर बात करनी है " ---- " नहीं बस दो चार दिन ही अकेले ही आये है
न जी घर पर ही अटका है पर मायके आये बगैर रहा नहीं गया तुम आओ न घर " कह कर ड्राइवर को चलने का
इशारा किया --- " आती हूँ जिज्जी " कह कर वह अस्पताल वाली रोड पर मुड़ गई , पलट कर उसे देखा और मन ही मन
बडबडाई अजीब है कैसा रूप बनाई है कोई टोकता भी नहीं , न अपना शरीर देखती है न उमर
क्या अजीब पहनावा है , ख़ैर हमे क्या ,तब तक घर आ गया --
बरसों
बाद मायके की मिटटी हवा के स्पर्श से एक हूक सी उठी और आँखों से बहने लगी --
संध्या हो रही थी इस घर की बेटी मायके आई थी पूरे चौदह बरस बाद मानो राम का बनवास पूरा हुआ हो पर एक ही साम्य है -वहां भी बाबा दशरथ न थे और यहाँ भी सूना था |
संध्या हो रही थी इस घर की बेटी मायके आई थी पूरे चौदह बरस बाद मानो राम का बनवास पूरा हुआ हो पर एक ही साम्य है -वहां भी बाबा दशरथ न थे और यहाँ भी सूना था |
इस
मिथिला की जानकी अपने बाबा के घर का द्वार खटखटा रही थी पर आज जनक
नहीं है उसे अपने अंकवार में भरने को अंदर माँ है भाभी है कालबेल पर ऊँगली रख कर
पल भर को सोचने लगी ,”अरे दीदी अबहीं आई का ? भले आया बहिनी बस हम जाय
वाला रहे गाय गोरु के सानी पानी होई गय अब चला जाईत तो
तोहार दरसन बिहान भिनसारे होत अब कुछ दिन तो रहना बच्ची
जल्दी न जाना ,,अम्मा बहुत दुबराय गई है जब
से भाभी भईया गये तबही से “ ,,, यह मथुरा भईया हैं ये
बचपन से इसी घर में है नदी पार से आते हैं रोज सुबह से शाम तक रहते
हैं घर का अंदर बाहर की सब ज़िम्मेदारी इन पर ही है नौकर नहीं घर के सदस्य है यह , तभी बाहर की हलचल सुन भाभी
की आवाज़ आई कौन आया है " दरवाज़ा खोलो न बहू जी " --- " खुला तो है मथुरा
भईया " कहती हुई बाहर आ गई ,,,, अचानक मुझे सामने देख उनका
मुंह खुला रह गया शब्द मानो गले में अटक गए मारे ख़ुशी के लिपट गई "बीबी आप आ
गई " कहती जा रही थी और बार बार चिपका लेती चूम लेती " अच्छा मेरा मुंह
जूठा मत करो भाभी और देखो अगर फिर से बीबी बोला तो वापस चली जाउंगी " कह कर
मै हंस रही थी और दोनों आँखों से आंसू लगातार बहते जा रहे थे --- " अम्मा
कहाँ है भाभी ? " –कहती हुई मै
बाबा के कमरे की ओर चल दी अम्मा से मिलने का उछाह पल
भर को किसी और की तरफ देखने ही नहीं दे रहा था
माँ
को चार साल से नहीं देखा था इस अरसे में काफी कमजोर हो गई है माँ , दोनों बड़े भाइयों के आपसी
मनमुटाव ने अम्मा को मानो तोड़ कर रख दिया है , बड़े भाई अम्मा के पास है और
उनसे छोटे अलग रहने लगे ,,, बाबा के बाद सारा निजाम बदल
गया अम्मा भी और मेरा आना जाना भी बाबा के बिना घर
अच्छा नहीं लगता यहाँ हर पेड़ पौधे में उनकी छुअन बसी है ...घर का हर कोना उनकी याद
समेटे है किताबों और डायरियों में उनकी ही महक है | अम्मा से मिल कर उनसे से
लिपट कर उनके स्नेह की ऊष्मा ले सहज हुई तो देर रात तक बतियाते रहे हम माँ बेटी --
न जाने कितनी बातें थी जो माँ को बतानी थी मुझे भी तो सब कुछ जानना भी था पूछना था
सब के बारे में , अचानक बिमला का ख्याल आ गया
-- " अम्मा मौसा कैसे है?"" कौन मौसा ? कहाँ से अभी याद आ गए तुमको
कभी पहले फोन पर भी नहीं पूछा "-- " माँ - आज आते समय बिमला मिली थी
" आँखों के सामने उसकी तस्वीर घूम गई उसके बारे में सब कुछ जानने की प्रबल
उत्कंठा हुई -- " दरोगा बहुत बीमार
है जैसी करनी वैसी भरनी भोगना तो पड़ेगा ही न सुगना को तो
मार डाले कलपा कलपा के खुद तो मौज किये सारी जिंदगी अब
फूट फूट के निकलेगा ही " माँ बडबडा रही थी मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था
क्या बोल रही है अच्छा अब तुम सो जाओ थक गई होगी माँ
ने मेरा हाथ सहला कर कहा | पर नींद मानो कोसों दूर थी
और मै अतीत में भटक रही थी | सुगना मौसी माँ के मायके के
गाँव की थी दूर के रिश्ते में चचेरी बहन लगती थी उनका ब्याह जगन्नाथ मिसिर से हुआ था , तीन बेटियाँ थी
उनकी – सीमा , सुधा ,बिमला ! मौसी कलकत्ता में
रहती थी कभी काज प्रयोजन में आती तो तीनो बेटियों को गुड़ियों जैसा सजा कर
लाती –खुद भी बड़े
ठसके से रहती , खूब चटक साड़ी ,भर हाथ चूडियाँ
आगे पीछे सोने के कड़े लगा कर पहनती तो मोहल्ले टोले की औरतें देख देख कर सिहाती ,कोई कोई
अपनी जलन उगल ही देती और बात ही बात में मुंह बिचका के पूछ
लेती “ डिजाइन तो बहुत सुंदर
है यही चौक वाले सोनार से बनवाई
हो का सुगना ?” ----“ नाहीं भाभी
अब ऐसन डिजाइन इधर कहाँ बनी ई तो सीमा
के बाबू जी अबकी धनतेरस पर बनवाये कहने लगे
तीन तीन बिटिया है हर तीज त्यौहार दो चार गहना बनवाते रहेंगे तो बियाह तलक तीनो के
लिए इतना हो जाएगा कि सर
से पैर तक पीली हो कर बिटिया ससुराल जायेंगी “ मौसी मुस्करा
दी मुंह में पान भरा था बोलते बोलते अचानक पान की पीक साड़ी पर टपक गई ,मौसी झट कमर में खोसा रुमाल
निकाल के रगड़ने लगी , माँ सब देख सुन रही थी अचानक
बोल पड़ी “ ऐ सुगना बड़ी फूहर हो तुम जाओ
जा के
धो के आओ कितनी बार कहा जब सहूर नहीं तो
काहे पान खाती हो कोऊ डाक्टर तो कहे नहीं उठ जल्दी नहीं तो एक हाथ पड़ जाएगा “ माँ से मौसी का बड़ा
प्रेम था माँ बड़ी थी न उनसे वह तुरत ही उठ कर चली गई
सब औरतों के जाने के बाद मैने सुगना मौसी को माँ से कहते सुना “ कहाँ बहिनिया वै कबके गहना
गढ़ावे वाले ई तो हम घर गृहस्थी के खर्च से कतरब्योंत कर के तनीतुनि बचाय के बनवाये
अब तुमसे
का छुपाना दस ग्राम में चार बन गये जब तक घिस के तांबा झलकी तब तक हमहूँ कहाँ रहब “ मौसी माँ से
झूठ नहीं बोलती थी कभी अक्सर अकेले में बतियाती और आंचल से आँख पोंछती जाती |
फ़ोर्स
में थे मौसा लेकिन पता नहीं किसने उनका नाम दरोगा रख दिया गाँव घर में अब सब उनको
दरोगा या दरोगा मिसिर बुलाते थे पहले तो
वह चिढ़े पर बाद में दरोगा जी सुन कर मुस्करा देते , पता नहीं क्या ओहदा था उनका
,शायेद स्टोर कीपर थे इसीलिये उनकी कमाई अच्छी थी तनख्वाह के साथ नम्बर दो का घपला
भी जरुर करते होंगे , इसीलिए जल्दी जल्दी जगह जगह तबादला होता रहता उनका ,इन दिनों
कलकत्ता में थे ,मौसी और बेटियां भी साथ ही
रहती , ऊँचे चौरस बदन के गोरे
चिट्टे मौसा जबान के बड़े खराब थे गाली उनके मुंह पर रहती फौज की नौकरी की बड़ी ऐंठ
थी उनमे कुछ तो आवाज़ बुलंद और कुछ हनक बनाने के लिए भी जोर से बोलते थे पर हमारे
घर आने पर अपने पैजामे में ही रहते यहाँ नहीं चलती थी उनकी
नौटंकी
सुगना
मौसी पक्के रंग और
मोटे नैन नक्श की थी उस पर तीन तीन
बिटिया भी कोख से जन दी उन्होंने ,लेकिन उनका
एक मजबूत पक्ष था वह थी उनकी जायजाद और पक्का घर ,इसी से उनका खूंटा गहरा धंसा
था जिसे
दरोगा मिसिर चाह के भी नहीं
उखाड़ पा रहे थे वरना बेटे की लालसा तो जब तब हिलोरें
मार ही जाती ,मौसी को यही गम घुन
की तरह खाए जा रहा था पर कभी
जाहिर नहीं किया तीनो बेटियों को बड़े लाड़ प्यार से पाला था मुझसे बड़ा स्नेह रखती
थी करीब पच्चीस तीस साल हो गए थे उनके देहांत को आखिरी बार अपनी शादी में मिली थी
तब यह बिमला आठ बरस की रही होगी , उसके दो तीन बरस बाद वो नहीं
रही ,पता नहीं अचानक क्या हुआ , अम्मा से तब
पूछा था तो बस इतना ही
बोली तन का रोग डाक्टर हकीम ठीक कर सकते है पर
मन का संताप प्राण ले कर ही जाता है ,माँ की मृत्यु
के समय सबसे बड़ी सीमा चौदह
पन्द्रह साल की थी तीनो बहनों में दो दो बरस का अंतर था | सीमा पढने
में बहुत कमजोर थी पर
सुधा अपनी कक्षा की तेज़ छात्राओं
में थी समझदार
भी बहुत थी सीमा एकदम माँ
का प्रतिरूप थी मोटी भी थी मौसी सुघर थी पर बिटिया
एकदम लौधड सिलबिल्ली सी , कच्ची गिरहस्थी थी लेकिन
सीमा ने
संभाल ली थी और छोटी सी उमर में छोटी बहनों के लिये माँ की जगह ले
ली उसने अब चौका चुल्हा भी
वही करती दोनों बहनों की पढ़ाई लिखाई पर भी ध्यान देती खुद का मन भी नहीं लगता और फुरसत भी नहीं थी ,सुधा थोडा बहुत हाथ बटाती
जरुर लेकिन अपनी पढ़ाई में लगी
रहती गेहुएं रंग की सुधा सुंदर थी पर सबसे खुबसुरत थी बिमला
बिलकुल गुडिया जैसी और रंग तो मैदे जैसा सफ़ेद माँ बाप
बहनों सबकी दुलारी थी , अब माँ
तो रही नहीं पर बहने बहुत ध्यान रखती थी ,बाद के कुछ एक
सालों बाद मौसा नौकरी से रिटायरमेंट लेकर यही इसी शहर
में आ गए थे इसी कारण जब
मायके आते तो मुझे भी हाल चाल मिल जाता कभी कभी मिल भी आते,वही दो तीन घर छोड़ कर फूला बुआ
भी
रहती थी फूला बुआ निसंतान थी दोनों प्राणी अकेले रहते और
मस्त रहते बुआ मुझसे बहुत प्यार करती वह ,उन से भी यहाँ आने पर सब हाल
समाचार मिल जाता | पर इस
बार एक लम्बे अन्तराल के बाद आने पर न जाने क्यों सब सहज नहीं लग रहा
था , इतनी उलझन थी कि सोने की लाख
कोशिश के बाद भी
नींद नहीं आ रही थी मेरे बार बार करवट बदलने से माँ जग गई –कुछ देर तो
बस मुझे देखती रही ,नाईट बल्ब की नीली हल्की
रोशनी में
भी मुझे माँ की वात्सल्य भरी आँखें दिख
रही थी “ तुम अभी सोई नहीं नीरू सो जाओ
बिटिया “ कह कर माँ ने अपना एक हाथ
मेरे उपर रखा और थपकने लगी न जाने कब कितने सालों बाद मै एक गहरी नींद सो गई ---सुबह बहुत देर से आँख खुली दिन चढ़ आया था ,”अरे अम्मा
इतनी देर हो गई हम सोते रह
गये जगाया क्यों
नहीं ? “ देर तक सोने का आज दुःख हुआ
क्योंकि
समय कम था और काम बहुत थे – चाय का कप लेकर बालकनी
में खड़ी हो गई बाहर देखते हुए , मन में बहुत
कुछ चल रहा था उन तीनो बहनों को लेकर -
माँ और
भाभी की आधी अधूरी बातों ने मेरी
जिज्ञासा और बढ़ा दी थी
...अरे मै फूला बुआ को कैसे भूल गई वो
तो चलता फिरता टेलीविजन है उनसे पूछना होगा ,,,,तभी माँ
ने कहा “ नीरू जल्दी
नहा ले अभी तुमसे मिलने कमला और मालती भी आती
होंगी सुबह सुबह ही सोना नाउन तुमको देख गई अब जै घर काम पर जायेगी खबर कर देगी बिटिया आई
है अब करे भी क्यों न तुम आई ही हो इतने दिनों के बाद बहुत
खुश थी अभी आती होगी वो
भी “ मै अपने
कपड़े ले नहाने
चल दी | जैसे ही बाहर
आई तो फूला बुआ सामने
ही बैठी सरौते से सुपारी काट रही
थी ,,,उन्हें देख कर मै बहुत खुश
हो
गई
मुझे देखते
ही बोली “ इंहा आवा बिट्टी
हमरे पास “ लिपटा लिया पास बिठा
कर स्नेह से हाथ पकड
मेरी बांह सहलाती हुई बोली “ तुम्हें हम सब
के तनिको सुधि नहीं आवत रही कसत पथरे का करेज हुई गवा
बिटिया एतने बरस बाद सुधि
भय ?” मेरी भी
आँखे नम हो गई ,, “ भला आप सब कैसे
भूल सकती हूँ बुआ रघु और
मिन्नी के जन्म के बाद
उनकी परवरिश ,पढ़ाई लिखाई में खुद
को जरुर भूल गई पर मायका नहीं भूली
माँ और मायका इनकी याद तो हर औरत के आंचल में
गाँठ सी बंधी होती है ,यह गिरह न कभी खुलती है ना
ही कभी ढीली पड़ती है
बुआ
बहुत याद आती है यहाँ की और आपकी बात तो
मिन्नी और रघु से अक्सर ही करते हैं हम ,फिर मिन्नी
के पापा नौकरी ऐसी है इसमें ट्रांसफर भी दूर दूर होते
रहे अब जाकर पांच छह साल से दिल्ली में है दोनों को
जरुरी काम न होता तो उन्हें भी साथ लाते
वो दोनों नानी से भी नहीं मिले है बहुत दिनों से ,अम्मा पहले आ जाती
थी अब नहीं यह भी आ पाती “ तभी माँ बोल पड़ी “ फूला जब तक शरीर चलता था हम खुद बच्चो को देख आते रहे
अब
कई साल से नहीं जा पाते “ अरे अम्मा देखो न तभी तो हम
आ गए न “ थोड़ी देर बाद मोहल्ले की चार
पांच औरतें आ गई माँ का
मायका होने के नाते सब हमारी मामी और मौसी ही लगती कमला श्रीवास्तव और
मालती सिंह माँ की पक्की सहेलियां है यह तिकड़ी भी बड़ी
मज़ेदार है बचपन से देखते आ रहे है अभी भी नहीं बदली यह तीनो | मेरी माँ और उनकी दोनों सखियाँ
में आपस में बहुत स्नेह है | माँ तीनो में सबसे बड़ी है
उनको दोनों ही दीदी कहती है और माँ
भी कमला मौसी को दुलार से कमली कहती सबसे मज़ेदार मिसेज़ सिंह यानी
मालती मौसी ,जब वह आँखे नचा कर बोलती तो
मुझे बहुत अच्छी लगती उनकी देखादेखी हमने भी बहुत कोशिश की आँखे चला कर बात करने
की छुटपन में और अम्मा के हाथों खूब कुटाई भी हुई हमारी , मिसेज सिंह के पास जब
मोहल्ले की ढेर सारी चटपटी मसालेदार खबरे
जमा हो जाती तो आकर अम्मा से सब खुसफुसा कर बताती थी ..हम सब को भगा दिया जाता पर
उनकी खुसफुसाहट भी इतनी तेज़ होती की सुनाई दे जाती
इतना ऊँचा स्वर था तब भी और
आज भी वही बरकरार है | यह दोनों भी बहुत सटीक श्रोत
हैं पूरी खबर इनके पास होगी ही पर मसला ये है पूछें कैसे एक संकोच सा लग रहा था
इसलिए बात नहीं बनी ,ले दे कर सिर्फ फूला बुआ रह
गई वो उधर दुसरे कोने में भाभी ,भौजी इन सबके साथ मजमा लगाये
थी ,लेकिन मेरा दिमाग
तो बस एकसूत्री कार्यक्रम में अटका था , सोच रही थी कैसे बात
छेडू बिमला की ,,,
माँ
तो सब औरतों से बात करने लगी हुई थी मेरे आने से बहुत खुश थी अब
तो तबियत भी संभली लग रही थी , मै धीरे
से बुआ के पास
सरक आई ,और उनसे बात
करने लगे बातों
में ही उनसे बिमला की बात छेड़ दिया “ बुआ सीमा और सुधा कहाँ
है कल आते समय बिमला तो मिली थी “ ---
“ अरे बिटिया ऊ नगिनियाँ कहाँ
मिल गई अरे का बताई बच्ची तुम्हे ,सुधा तो अपने ससुरे मा रहत
है कभो आवत नाहीं सुना है दुई बेटवा है ,पर सीमा की तो बहुत दुरदशा है , उस बिचारी के साथ बहुत
अत्याचार हुआ जबकि सबसे सीधी साधी बैलनी वही रही पति हरामी शराबी
कबाबी है बहुत मार पीट करत है “
-- मुझे बड़ा
अजीब लगा और पूछ बैठे “ अरे ऐसे
कैसे शादी कर दिए उसकी मौसा बिना देखे
भाले ही ये कौन सी बात हुई ?”
फूला
बुआ ने जो बताया मै दहल गई काँप गया ह्रदय
उन्होंने कहा - “अरे बिटिया अब क्या बताएं पहले वाला
तो और दुर्दशा किये था सास ननद आदमी सभी मिल के
एक दिन बेचारी को मिटटी का तेल उड़ेल के फूंकेय
जात रहेन बड़ी मुश्किल से जान बचाय के
भाग कर आई सीमा “ -बुआ ने बताया सुधा की शादी तो
अच्छी हुई उसका आदमी अच्छी नौकरी पर है पर विदा के बाद वह कभी पलट कर मायके नहीं
आई न ही बाप और बहन का मुंह देखा बड़ा अजीब लगा सुन कर “आखिर ऐसा क्यों बुआ ?”
उन्होंने बताया
सुधा की शादी तो रिश्तेदारों ने तय करवा दी लड़की तो अच्छी सुंदर थी ही पढ़ी लिखी भी
थी पर दरोगा मिसिर ने शादी में
एक पाई खर्च करने से मना कर दिया था पर लड़के वाले भले लोग थे
मन्दिर में शादी कर के लिवा ले
गये अपनी बहू ---
“ बिटिया ऊ दिन और आज का दिन
कब्बो नहीं आई सुधा पलट के ,ऊ दरोगा इतना
बीमार है सब कहिन बाप का मुंह देख जाव कुछ बोली नाही पर नही आई “ -- “ और सीमा कहाँ
है वो भी नहीं आती? “
“ अरे बेटा
जब जान बचाय के वो यहाँ बाप
के पास आई तो कुछ दिन बाद ही यहाँ भी बेचारी के
दुर्दिन शुरू हो गए “ कह कर चुप हो गई | “ काहे यहाँ
क्या हुआ यहाँ तो बहन और
बाप के पास थी अरे एक बात समझ
में नहीं आई ये बिमला
की शादी मौसा क्यों नहीं किये अब तक पैंतीस
चालीस की हो रही
होगी न ? “
फूला
बुआ कुछ बोलती तभी माँ ने हम दोनों को बुला
लिया |
“ यहाँ आओ नीरू सब
यहाँ तुमसे मिलने आई है उधर कहाँ बैठी हो तुम दोनों “ – हम दोनों इधर आ गए
भाभी ने कहा “ का हुआ बुआ हुआ का बतिया रही थी हमको भी बताइए न “ ... “ अरे कुछ नहीं दुलहिन
हम बस नीरू बिटिया से कहत रहिन ई हमरे लवकुश बहुत परेसान करत है हमका गर्मी भर इनके कौनो इलाज़ होई तो बताना बिटिया “इतना सुनते ही सब औरते मुंह
में आंचल दबा कर हंसने लगी और माँ ने तो बुआ को देख आँख तरेरी --- बात
अधूरी छूट गई थी -
मैने सोचा
भले ही दो दिन और रुकना पड़े पर पूरी बात सुन कर ही
जायेंगे | आज यह भी पता चला दरोगा की
हालत बहुत खराब है बस कुछ दिन के मेहमान है टट्टी पेशाब बिस्तर पर ही हो रहा है ,लकवा मार गया है अब घर पर
केवल बिमला ही है सीमा को उसका पति आने नहीं देता और सुधा
खुद ही नहीं आती , नाते रिश्ते में कोई
ख़ास आना जाना नहीं जब चलते फिरते थे तो अम्मा बाबू जी
के पास आ कर कभी कभी बैठते या एक दो लोग और थे जो उनके
यहाँ आते जाते ,बाकी किरायेदार है तो ,पर उन्हें क्या पड़ी है जो
देखभाल करे जितना कर दे रहें है वही बहुत है वरना बाप बेटी का
व्योहार बहुत खराब है सबसे तुरंत ही थाना पुलिस करने लगते दोनों ,अब जब
से सूबेदार बिस्तर पर पड़े तब से तो बिमला
एकदम हंटरवाली हो गई है ,डी.एम ,,एस .पी –सब जगह पहुँच जाती
एप्लीकेशन ले कर सब से गोहार लगाती हमारी
माँ हैं नहीं बाप बिस्तर पर है और
लोग हमको तंग कर रहे है ,हमारे पैसे और जायजाद
की लालच में ,
एक तो
सुंदर शक्ल सुरत उस पर पहनावा ऐसा अधिकारी भी कम उमर जान कर तरस खाते बेचारी अकेली
लड़की को तंग कर रहे है |
अब
ऐसे में कौन मदद को आएगा ,,अब खुद करती होगी या किसी
बुला कर सफाई कराती है राम जाने --- दिन तो बस पलक झपकते ही कब गुजर गया पता ही न
चला दिन में हम अपनी बचपन की सहेली से मिलने गए वापस आते समय अचानक ख्याल आया फूला
बुआ के घर चलें अभी बहुत सी बातें अधूरी रह गई थी दरवाज़ा खटखटाया तो बुआ ने ही खोला और बोली“ हम जानत रहे नीरू जरुर
आई लेकिन का बतायें बेटी कोई कोई बात ऐसी भी होती है
जो न निगली जाय न उगली जाय ,तुम अंदर आओ बैठो “ कुछ देर इधर उधर की बात करने
के
बाद मैने मौसी से पूछा आपने कल सीमा की बात अधूरी छोड़ दी थी क्या हुआ उसको कहाँ है वह – तब उन्होंने बताया ससुराल
से आने के बाद यहाँ भी
बहुत मार खाती थी बेचारी अक्सर हाथ पैर में निशान मुंह पर सूजन जैसे कोई घूंसे से
मारा हो – “ क्यूँ मारते
थे उसे वो तो बहुत सीधी साधी थी ....“ हां बहुत सीधी रही अब क्या
कहें तुमसे आस पड़ोस वाले भी कानाफूसी करते थे जितने मुंह उतनी बातें होती दरोगा के घर से रोज रात को सीमा के
चीखने चिल्लाने की आवाज़ आवत रही फिर लगे कोई उसका मुंह
दबाये भीतर घसीट के लई जात है अब बेटा कौन
बोले जो समझावे उस पर बिमला और बपवा दरोगवा दूनो फालेन होई जात रहेन तुमका याद है ऊ मेहता पाठशाला वाले
चच्चा की वो एक बार दरोगा को बहुत
फटकारे और बिमली की शादी के लिए लड़का भी
बताये बहुत दबाव डाले की अब ब्याह करो इसका और
सीमा की दूसरी शादी भी करो जानती
हो बेटा उन पर ई छिनार बिमली छेड़छाड़ के रिपोर्ट लिखवा के
बंद कराय दिहिस अब बुढौती में वो भला आदमी
रात भर थाना में बंद रहे फिर
जब टोला मोहल्ला वाले गयें तब जा के छोड़े उनका ,कुछ दिन बाद सीमा का बियाह
कर दिये वो शराबी है बहुत मारत है अब ब्याह कैसा बस घर
से भेजने की खानापूरी भर किहिन ,दुई चार जने घरेन पै आ गएँ बस माला बदलवा के सिंदूर भरवा दिहिन् अउर विदा
कय दिहिस आपन बिटिया ई मुंहझौंसा , मरीगाड़ा ई दरोगवा “ सब बात सुन कर मुझे तो यही
लगा
सीमा के पति
ने सोचा था पैसा जायजाद के साथ नौकरानी मुफ्त में मिल रही तो हर्ज़ क्या है दो रोटी
खाएगी काम करेगी और पड़ी रहेगी ,उसे बार बार मार पीट कर
भेजता जाओ अपने बाप से पैसा लाओ और यहाँ से बाप और छोटी बहन पीट कर उल्टा लौटा
देते बहुत दुःख हुआ सुन कर | फूला बुआ ने ही बताया आखिर बार जब वह वापस जा रही थी तो
उनसे
मिली थी | वो पागल
बेवकूफ नहीं बहुत संतोषी
लड़की है बता रही थी सुधा के पास गई थी पर वो उसको साथ नहीं रख सकती थी कोई
मज़बूरी रही होगी अब इस महंगाई के
ज़माने में एक प्राणी का रहना बोझ ही तो हुआ न सुधा
पढ़ाती है स्कूल में उसका
पति क्लर्क है किसी सरकारी विभाग में दो बेटे हैं उन
के चार प्राणी तो वही लोग है फिर सुधा की सास भी साथ
ही रहती है छोटे से दो कमरे के घर में जवान बड़ी बहन को कहाँ रखती कुछ पैसे दे
कर लौटा दिया अब कहीं और ठिकाना तो है नहीं पर फिर यही
बाप बहन के पास आ गई पर नहीं रहने दिया बिमला ने -हमने
फिर से फूला बुआ को तनिक सा कुरेदा “ एक बात
बताइए आप लोगों ने नहीं समझाया कभी दरोगा मौसा को आखिर तीनों बेटियां उनकी है तीनों बराबर
हुई न फिर
ऐसा क्यूँ ? और इस बिमला
को कभी नहीं टोकी आप ये अपनी बहन पर ज्यादती
आखिर क्यों उसे तो बाप से झगड़ जाना
चाहिए “ बुआ तमक के बोल पड़ी “ अरे बिट्टी का बात करत हो ऊ
पक्ष लेइ
वही तो सब बातन की जड़ है कबो कवनो बात पर टोकाटाकी भर कर दिहिन
तुरंत बाप बिटिया के पैरवी माँ खड़ा होई जात रहन हम गय
रहे सीमा के जाने के पहले तुम्हरे फुफ्फा के साथ समझावे बाप बिटिया को जैसन बतिया शुरू किहे दरोगा भड़क गएन “----- “ आप लोग हमारे घरेलू मामले
में
न पड़े तो अच्छा होगा ,कभी कोई आ
जाता है सलाह देने छोटकी की शादी करो कब
करोगे अरे किसी से क्या अब उसे नहीं
करना शादी ब्याह तो लोग काहे चिंता में मरे जा रहे है,अब आप लोग आये है हम क्या
करे क्या न करे समझाने हमें बिमला छोटी है सबसे हमारा सारा ख्याल भी यही रखती है
अब जो कुछ है सब इसी का है ,बाकी दोनों की शादी ब्याह कर
दिया वो अपने ससुराल में रहें क्या जरूरत है भाग भाग के
आने की “ ----- “ अरे कैसन बात करत हो आप बाप
हो या कसाई बिटिया को मार मार के भुरकुस कई दिहिन सब आपको तनिको रोआं नहीं कांपा ,बिटिया है तुम्हार अब हमका
देखो हम
दोनों परानी एक बिटिया को तरस के रहि गए
देवी मईया हमार कोरा सून रखी पर आप की आँखी
मा परदा पड़ गया है बस बिमली सब दे देंगे अरे बराबर नहीं तो कुछ तो
सीमा और सुधा को भी दे का चाहि एतना कहतय मान अगिया बैताल होई
गएँ दरोगा बाबू कहेन – “ कोई हक नहीं किसी साली
का वो हरामजादे पैसे की लालच
में यह नाटक करते है मारपीट का आयेदिन की
नौटंकी है यह सब लालची है कानी कौड़ी
नहीं दूंगा किसी साले को “
“ तब से तुम्हरे फुफ्फा ने आपन कसम धरा दी अब कभी इन बाप बेटी के कोई
मामले मा न पड़ना अउर हमरे मुंह पर ताला लग
गवा बिट्टी ,हां सीमा का हाल देख के बहुत पीड़ा होत रही
मुला कुछ नहीं कर सकत रहे , फिर ऊ हो चली गई बेटा उसको
घर से निकाल दिहिस बिमला , रात भर ऊ बिटिया बाहर बरामदे में पड़ी रही भोर में हमरे
पास आई भेंट के बहुत रोई जात बखत जब देहरी पर माथा टेकी तबही हम समझ गए अब न
आई जात समय बस इतना ही बोली “ “अब हम कभी नहीं
आयेंगे इस नरक में हम बिमला की तरह पढ़ी लिखी और सुंदर
तो नहीं है लेकिन उसकी तरह नहीं रह सकते “ --- सब कहते थे सीमा कुछ
मंद बुद्धि की थी,पर मुझे लगता है वह औरों से बहुत अच्छी थी कम से
कम सही गलत तो समझती थी ---
बुआ
बुदबुदा रहीं थी “जिंदा परेत है यह पापी सब
समझत है लोग पर
मुंह पर ढकना लगाये है अब बिमली कुलक्षणी की को देखो न तो कबो उमिर
ही बढ़ी उसकी अपने रूप पर बड़ा घमंड है जैसे उनके आकास से इन्द्रासन
की परी उतरी है उस पर ब्यूटी पार्लर और सीख लिए है और
खूब रंगी चोंगी घूमत है और सैंडिल देखी थी जब मिली रही
तुम्हे देखा न कैसे खट खटात चलत है माने कठघोड़वा पै सवार हो रूप का गुमान इतना राम
राम का बतायें तुम्हे एक दिन दुपहरिया में आई और हमसे बोली “ -----“ बुआ आप को तो अम्मा की सूरत अच्छी तरह याद है न बताइये
अम्मा ज्यादा सुंदर थी या हम उनसे ज्यादा खूबसूरत हैं ?” बताते हुए बुआ का गोरा
चेहरा तमतमा कर लाल हो गया बोली
“ बेटा देह जरि गय हमार भला
महतारी से कौन मुकाबला लेकिन हम कहे ये कौन सी बात है बिमला
बहिन बहिन और देवरानी जेठानी मा ऐसन कम्पटीसन होए तो
समझ में भी आये पर
महतारी बिटिया में तो शोभा नाही देत हम इतना
कहे वो बस तुनक के चल दी “
दिमाग
जिस
तरफ इशारा कर रहा था आत्मा उसे मानने से छिटक रही थी | मुझे मौन देख फूला बुआ ने पूछा “ किस सोच में हो
बिट्टी अब तुम दो दिन को ही
आई हो काहे हलकान
हो रही हो छछूंदर के पीछे ,सब जानत हैं पैंतीस ,चालीस
साल की
बिटिया ई पापी बाप बिन ब्याहे बैठाए है पचास लाख रूपया कुल संपत्ति बिटिया के नाम कर
दिये और ये हरहट कम ऐबिन
नहीं नागिन ऐसी गोलियाय के बैठी है सोलह बरिस के बनी
है साज सिंगार देखो कवनो सुहागन से कम है क्या ?लाली लिपस्टिक चौबीस घंटा
पोते नाजाने सोवत बख्त मुंह धोवत है की नाही ,अब अगर
कभी शादी करने को समझावे तो झनकही गईया जैसन बिदक जात है कहे लगी “ -------- “ नहीं करनी शादी सब हमारी
जायजाद के लालच में शादी करेंगे फिर बाबू को
कौन देखेगा नहीं जाना उनको छोड़ कर “-----
" हमहूँ कहे जाव मरो देखव बाबू को सती होई जाव अरे भला ऐसे कतो होत है ,तुम घर जमाई धर लो अरे हरदी तो लगवाय देया बिटिया के नाती नतकुर
दामाद सब सेवा करिहे घर भर जाय पर बिटिया जाई देया अब के
------- अन्हरे के आगे रोवे /आपन दीदा खोवे -- "
" हमहूँ कहे जाव मरो देखव बाबू को सती होई जाव अरे भला ऐसे कतो होत है ,तुम घर जमाई धर लो अरे हरदी तो लगवाय देया बिटिया के नाती नतकुर
दामाद सब सेवा करिहे घर भर जाय पर बिटिया जाई देया अब के
------- अन्हरे के आगे रोवे /आपन दीदा खोवे -- "
हम
सोच
रहे थे कैसा स्वार्थ है इस बाप का पूरा
जीवन क्या पैसे और जायजाद के सहारे कट पायेगा ,रिश्ते पहले ही कट गए इससे ,बहुत तरस
आया बिमला के ऊपर आज सब सुनकर ,पर बुआ तो एकदम भडक ही उठी हमारी बात सुन कर कहने लगी “ तुम चुप रहो गली गन्धाय गई
है
सब लोग जानत है पर कोऊ बोली न लेकिन जब पानी में
विष्ठा करोगे तो उतरायेगा ही, नासमझ रही जब ,तब तक तो ठीक पर अब तो समझदार है
भला बुरा समझत है ".......
-अभी बिमला
के बारे में और भी बात कर ही
रही थी की अम्मा का फोन आ गया .. “ हम चल रहे है
बुआ अब चलें अम्मा बुला रही है आप घर आइये न
बात अभी पूरी नहीं हुई और भी ढेर बातें करनी है न जाने कब आना हो
फिर “ --- “आउब बेटा अब कल आउब “ ,,,मै वापस घर
आ गई भाई आ
गए थे हम दोनो भाई बहन गले लग कर मिले देर रात तक
बतियाते रहे भईया ने पूछा “ अरे नीरू मिन्नी और रघु को
क्यों नहीं लाई ?बच्चे भी ननिहाल घूम जाते “ ---“ भईया आयेंगे
बस दो महीने
बाद ही चक्कर लगेगा फिर से “ ------- देर रात हो गई तो
माँ ने डांट लगाई “अब बस
करो सो जाओ तुम दोनों अब कुछ बातें कल
के लिए छोड़ दो “ -- आज
रात मै भाभी के पास सोने आ गई दिन में बात हो नहीं पाती और समय भी बहुत
कम है कुछ तो पता चलेगा मै दरोगा
मिसिर के बारे
में बहुत कुछ
जानना चाहती थी कुछ दबी परतें उघाड़ना था फिर अंदर से दबी हुई फफूंद फदक
ही जाती मुझे याद था मौसी के मरने के
बाद अक्सर दरोगा मौसा जब भी घर आते अपने
अकेलेपन का रोना रोते माँ से जब सुगना मौसी खतम हुई चालीस बरस के तो रहे ही होंगे रंगीनमिजाज़
तो शुरू से ही थे सुनने में तो यह भी आया था कलकत्ता में कोई बंगालन भी रख रखी थी ,इस बात पर मियां बीबी में
रोज ही झांव झांव होती और झगड़े का अंत मौसी के बदन पर
नीले काले निशान छोड़ जाता ,वही नहीं वह बाज़ार का भी स्वाद ले
आते ,मौसी ने माँ से अपने सब दुःख बांटे थे कुछ नहीं
छुपाया था , अक्सर अम्मा उन्हें याद करती तो कहती पति का
प्रेम मिले भले ही दो रोटी कम मिले जीवन सुख से बीत जाता है लेकिन सौत तो माटी
गारा की भी बर्दाश्त नहीं होती छाती पर सिल ऐसी
सवार सौत तो जीवन में घुन जैसे लगी रहती है खोखला कर देता है तन को यह दुःख और
यही दुःख और घुटन मौसी के कैंसर का कारण हुआ उन्हें बच्चेदानी का कैंसर था बीमारी का पता भी तीसरी स्टेज में चला बहुत ही तकलीफ में
उनके प्राण गए ,ख़ैर उनकी तो सद्गति हो ही गई ,कुछ दिन बाद दरोगा मिसिर अपने
पुराने रवैये में लौट आये जब उनके सामने ही मौका मिलते ही खूंटा तोडाय
के इधर उधर मुंह मार ही आते थे जहाँ हरियर चारा दिख जाता , अब
तो पत्नी के मरने के बाद
तो वह छुट्टा सांड ही हो गए ,” सभी से एक
ही बात कहते हमे भी तो कोई चाहिए जो हमारी देखभाल करे और तीनो बिटियों को भी देखे
हमारी भी जरूरते है जीवन अकेले नहीं कटता “ बाकी सब
बातें तो लोगों से सुनी मैने ,पर एक बात तो
मैने भी गौर किया था दरोगा मिसिर की निगाह
साफ़ नहीं थी उनकी लोलुप दृष्टि थी
बाद में सुनने में आया उन्होंने ने शादी कर ली ,मैने भाभी से पूछा “ दरोगा मौसा ने शादी कर ली थी आपने देखा था उसको वो कहाँ गई ?”“ भाभी ने बताया “ हां बात सही है ब्याह कर लिए थे और यहाँ भी ले कर आये थे मिलवाने तब देखा था वो सुंदर तो थी पर आई कहाँ से कोई घर खानदान नहीं जानता था ,आर्य समाज में भंवरी फिर लिए और घर ले आये जितने मुंह उतनी बातें कोई कहता कलकत्ता वाली ही है पर बोली बानी से तो इधर की ही लगती थी बहुत तेज़ दिख रही थी एक ही बार हम भी देखे थे उनको फिर अम्मा जी उनके घर कहाँ जाने देती है कभी मोहल्ले टोले वाले तो मुस्की मार के कहते "मीरगंज में ससुराल है दरोगा जी छापा मारने गये होंगे दिल दे बैठे दरोगा बाबू " मीरगंज पतुरियों का मोहल्ला है ,वह औरत भी बस दो तीन बरस ही तो रही फिर बड़ा नाटक हुआ बहुत पैसा ली तब जाकर इनका पिंड छोड़ी ये दरोगा भी कम चकड़ नहीं है कानूनी कार्यवाई पूरी करवा के भगाए वरना जायजाद में हिस्सा पाती ले लेती ,उसके बाद से शादी का नाम नहीं लिये कोई कहता भी तो कहते अरे कौन झंझट पाले जब बाज़ार में दूध मोल मिलता है तो गईया काहे पालें और बेशर्मी से ठठा कर हंस देते “ भाभी बोलती जा रही थी पर नींद से उनकी आँखे मुंदी जा रही थी ,” आप सो जाइए भाभी कल बात करेंगे “ कह कर मैने करवट बदल लिया थकान से शरीर तो चूर था ही नींद हावी होने लगी दिनभर की भागदौड़ और दिमागी उलझन से थक कर जो गहरी नींद सोये तो बस सुबह ही आँख खुली .......
मुंह हाथ धो कर चाय बनाने के लिए रसोई में आये तो भाभी चाय छान ही रही थी “ अरे बीबी आप क्यों आ गई हम ला रहे है न वही पर “ मुस्करा कर बोली बड़ी भाभी “ अरे आपको कैसे पता हम जग गए है “ कह कर बड़े लाड़ से उनकी कमर में हाथ डाल कर खींच लिया “ अररे अभी छलक जाती तो बहुत गर्म है आइये चले अम्मा के पास ही वो सुबह ही नहा ली है अभी जरा सी देर हो जायेगी तो बच्चो की तरह रूठ जायेंगी और नहीं पियेंगी चाय फिर बड़ी मुश्किल से मानेगी “ हम दोनों माँ के पास आ गए चाय पीते पीते अचानक मैने पूछा
बाद में सुनने में आया उन्होंने ने शादी कर ली ,मैने भाभी से पूछा “ दरोगा मौसा ने शादी कर ली थी आपने देखा था उसको वो कहाँ गई ?”“ भाभी ने बताया “ हां बात सही है ब्याह कर लिए थे और यहाँ भी ले कर आये थे मिलवाने तब देखा था वो सुंदर तो थी पर आई कहाँ से कोई घर खानदान नहीं जानता था ,आर्य समाज में भंवरी फिर लिए और घर ले आये जितने मुंह उतनी बातें कोई कहता कलकत्ता वाली ही है पर बोली बानी से तो इधर की ही लगती थी बहुत तेज़ दिख रही थी एक ही बार हम भी देखे थे उनको फिर अम्मा जी उनके घर कहाँ जाने देती है कभी मोहल्ले टोले वाले तो मुस्की मार के कहते "मीरगंज में ससुराल है दरोगा जी छापा मारने गये होंगे दिल दे बैठे दरोगा बाबू " मीरगंज पतुरियों का मोहल्ला है ,वह औरत भी बस दो तीन बरस ही तो रही फिर बड़ा नाटक हुआ बहुत पैसा ली तब जाकर इनका पिंड छोड़ी ये दरोगा भी कम चकड़ नहीं है कानूनी कार्यवाई पूरी करवा के भगाए वरना जायजाद में हिस्सा पाती ले लेती ,उसके बाद से शादी का नाम नहीं लिये कोई कहता भी तो कहते अरे कौन झंझट पाले जब बाज़ार में दूध मोल मिलता है तो गईया काहे पालें और बेशर्मी से ठठा कर हंस देते “ भाभी बोलती जा रही थी पर नींद से उनकी आँखे मुंदी जा रही थी ,” आप सो जाइए भाभी कल बात करेंगे “ कह कर मैने करवट बदल लिया थकान से शरीर तो चूर था ही नींद हावी होने लगी दिनभर की भागदौड़ और दिमागी उलझन से थक कर जो गहरी नींद सोये तो बस सुबह ही आँख खुली .......
मुंह हाथ धो कर चाय बनाने के लिए रसोई में आये तो भाभी चाय छान ही रही थी “ अरे बीबी आप क्यों आ गई हम ला रहे है न वही पर “ मुस्करा कर बोली बड़ी भाभी “ अरे आपको कैसे पता हम जग गए है “ कह कर बड़े लाड़ से उनकी कमर में हाथ डाल कर खींच लिया “ अररे अभी छलक जाती तो बहुत गर्म है आइये चले अम्मा के पास ही वो सुबह ही नहा ली है अभी जरा सी देर हो जायेगी तो बच्चो की तरह रूठ जायेंगी और नहीं पियेंगी चाय फिर बड़ी मुश्किल से मानेगी “ हम दोनों माँ के पास आ गए चाय पीते पीते अचानक मैने पूछा
“ मझले भाई भाभी आज आयेंगे
न भाभी ? ऐसा न हो हम चले जाए तब
दोनों
आयें ”मंझले भाई से बिन
मिले कैसे जा पाउंगी मै
---
“ हां आज ही
आना है भईया जी को फोन लगाया था पर लगा नहीं शायेद
ट्रेन में होंगे “ ....हम सब बात कर ही रहे थे कि
खबर आई दरोगा मौसा खतम हो गए कोई
छोटा लड़का था चौदह पन्द्रह साल का पूछने पर बताया
उन्ही का किरायेदार है ----
भईया
को बताया तो
वह तुरंत चले गए हम और अम्मा पीछे से पहुंचे | बस गिने चुने लोग थे अभी
किरायेदार और कुछ नातेदार
जगन्नाथ
मिसिर उर्फ़ दरोगा मिसिर की लाश को नीचे जमीन पर उतार दिया गया था एक अजीब सी
गंध आ रही थी कुछ बुजुर्ग भी आ गए थे ,यही तो हमारे पुराने शहर और
मोहल्लों में अभी
भी बचा है इंसान कितना भी बुरा
हो उसके मर जाने पर लोग सब भुला देते है , बिमला जो जैसे कह रहा
था वही कर रही थी ,आँखे सूखी थी पर बहुत खाली
सी थी सपाट आँखे भय उत्पन्न कर रही थी ,जैसे जैसे लोगों को पता चलता
गया लोग आते चले गए ,अब यह
बात उठी शव को मुखाग्नि कौन
देगा ,बेटा है नहीं , दोनों दामाद आये नहीं
भाई भतीजों कोई सम्बन्ध नहीं रखते ,तभी किसी ने
सुझाव दिया सुधा का बेटा आग दे सकता है उसे बुलवाया जाए , आखिर दरोगा का नाती है पर विडम्बना यह
है न तो नाना ने कभी
नाती को देखा था , न नाती ही नाना को पहचानता
होगा हालांकि अट्ठारह बरस का होगा ,वही सबके सामने
ही फोन लगाया गया फोन नम्बर भी सुधा की सहेली जो इसी मोहल्ले में
रहती थी उसी ने दिया था , सुधा ने आने से
इंकार कर दिया और कहा “ मेरा बाप तो उसी
दिन मर गया जब हमारी अम्मा ख़तम हुई थी अब
कोई मरे या जिए
क्या फर्क पड़ता है और हाँ मेरा बेटा लावारिस लाशें
नहीं फूंकता आप उस आदमी को
किसी नदी नाले में फेंक दीजिये मेरा बेटा नहीं जाएगा दोबारा मुझे फोन मत करियेगा "
इतना कह कर
फोन काट दिया | वहां जितने
लोग थे सब सन्न रह गए अब उन्हें ले जाने की
तैयारी शुरू हो गई लोग बस मानवता के नाते लगे थे, बिमला शव के पास
बैठी थी अचानक वो चीख मार कर रोने लगी “ बाबू अब
हम क्या करेंगे “ लोग शव को
उठा कर चले इधर बिमला का रुदन बहुत कारुणिक था ,एक दो औरतें
उसे चुप कराने ढाढस बधाने में
लग गई ,बार बार वो चीख उठती ,, अचानक कोई बोल
उठी मालजादी “ -- बाप के
लिए रो रही
है या भतार
के लिए - अब बस
भी कर ई छछ्न्द “ पलट कर देखा
तो बहुत सी औरतों ने मुंह पर
आंचल रख लिया था, उधर कोने में एक
गुट मुंह में मुंह जोड़े खुसुरफुसुर कर
रहा था ---
मेरे दिमाग में जैसे सैकड़ों बम एकसाथ दग रहे थे --- बाप के लिए रो रही है या भतार के लिए --- बार बार यही वाक्य गूंजता दिमाग की रगें फटने लगी थी इसकी गूंज से दम घुटने लगा , बिमला को तो मानो काठ मार गया , बिमला घुटनों में मुंह दिए बैठी थी औरतों के व्यंग बाण उसके कानो में जा कर भी नहीं जा रहे थे बस उसके काष्ठवत शरीर से लग कर जैसे फिसल जा रहे थे , पर मै नहीं सुन पा रही थी बोल ही पड़ी बस करिए आप लोग अभी शव घाट तक भी नहीं पहुंचा अभी तो चुप रहिये , बेचारी लड़की को सांत्वना नहीं दे सकती तो इतना कड़वा बोल तो न बोलिए ,मुझे घूर कर देखते हुए सब मौन हो गई ,कुछ औरतों की आँखों में सहानभूति भी दिखी ,पर जिन आँखों से बिमला ने मुझे देखा वह कैसे बताऊँ उनमें कितनी पीड़ा कितने सवाल जवाब थे , मै तुरंत उठ कर घर आ गई ,मुझे वापस भी जाना था पर एक बार बिमला से भी मिलना चाहती थी माँ भी रोक रही थी इसलिए दो दिन और रुक गई ,रिश्तों का वीभत्स स्वरूप जाना , पर विश्वास ही नहीं कर पा रही थी , मुझे तनाव से रात को नींद ही नहीं आई सो सुबह आँख ही नहीं खुली सारी रात बस बिमला की पथराई आँखे मुझे नजर आई और मै यही सोचती रही - कौन कसूर वार है बिमला तो बच्ची थी उसका क्या अपराध उसे तो कुछ पता भी नहीं ,उस नन्ही बच्ची को क्या पता गलत तो वो था जिसे उसे सहेजना था वह ही उसे तिनके तिनके बिखेरता रहा वह उम्र तो गीली मिटटी की तरह होती है जिस सांचे में ढालो ढल जाती है , मै सही गलत ,अर्थ अनर्थ में झूलती रही रात भर ,बस कुछ देर ही सोई थी इसलिए देर से उठी ,आज वहां हवन था क्रियाकर्म कौन करता इसलिए शुद्धिकरण हवन ही करवा दिया गया ,मै वहां जाना चाहती थी माँ ने मुझसे कहा भी " अब तुम मत जाओ बेटा वहां की कचरपचर सुन कर वही गुनती बुनती रहोगी और दिमाग खराब कर लोगी तबियत अलग खराब हो जायेगी तुम्हारी " ---------"बस थोड़ी देर के लिए जा रही हूँ जल्दी लौट आउंगी अम्मा "
न जाने क्यूँ एक बार मै बिमला को देखना चाहती थी क्या देखना चाहती थी पता नहीं , शायेद उसका चेहरा पढना चाहती थी , या उसकी आँखों में उसके चेहरे में कुछ ढूँढना चाह रही थी ,
हालाँकि वहां पहुँचने में तनिक देर भी हो गई हवन हो चुका था प्रसाद बांटा जा रहा था मै भी अंदर जा कर बैठ गई मोहल्ले की औरतें इकट्ठी थी आपस में बतकुच्चन में जुटी थी कुछ कुछ शब्द बिना प्रयास के मेरे कानों में भी पड़ रहे थे
आधा घंटा हो गया तो मै बस उठने ही वाली थी अचानक सेल फोन बज उठा ,
" बस आ रही हूँ माँ " फोन बंद करते मै तुरंत उठ कर चल दी ,
बाहर आकर कार में बैठने ही वाली थी पीछे से मेरे कंधे को किसी ने छुआ पलट कर देखा तो वो ही थी गीली आँखे लिए चुप खड़ी थी ,मैने उसका हाथ पकड़ा और थपथपाया कोई बोल ही नहीं थे मेरे पास उसके लिए न सांत्वना के न ही भर्त्सना के ही लिए मेरी समझ में नहीं आ रहा था उसे क्या कहूँ , ----एक झटके से कार में बैठ गई और दरवाज़ा बंद कर लिया ,दोबारा मैने पीछे पलट कर उसे देखा भी नहीं न जाने क्यूँ मै खुद नहीं समझ पा रही थी मुझे उससे सहानभूति होनी चाहिए या घृणा ,अजीब उहापोह थी मन खिन्न था ,
आज वापस लौटना था लेकिन सर में इतना दर्द हो रहा था कि जाने की हिम्मत नहीं हुई --मै दवा ले कर लेट गई पर आँख मूंदते ही उन औरतों की आवाज़े मेरे कानों बम की तरह विस्फोट करनें लगी वो आज भी यही उसे यही सब बोल रही थी शायेद सारी उम्र बोलें , ----
----बाप के लिये रो रही है या भतार के लिये --- मैने अपने कानों को तकिये से दबा लिया --- यह शब्द नहीं जहरबुझे तीर थे जिनसे एक रिश्ते की हत्या हो रही थी ---लेकिन फिर वही प्रश्न -- अपराधी कौन ? --- दवा के असर से जरा आँख लगी ही थी कि एक भयावह स्वप्न --और पूरा शरीर पसीने से भीग गया उफ़ -
मेरे चारों तरफ रुदालियों की तरह कुछ काली आकृतियाँ रुदन कर रहीं थी यह वह अभिशप्त आत्माएं थी जो अपनी छाती पीट पीट कर रो रही थी और करुण स्वरों में न्याय की गुहार कर रही थी उनके रुदन का स्वर यही था --
--"सुनो लोगों अगर बाड़ ही खेत खाने लगे तो बेचारी फसल क्या करे तुम ही बताओ " , अगली सुबह --- उस रात फिर मै सो नहीं पाई मै वापस आ गई -
कुछ दिन बाद पता चला बिमला नहीं रही उसने आत्महत्या कर ली पर अपने पीछे एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गई ---
-------जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो फसल कहाँ जाए ---
---दिव्या शुक्ला !!
मेरे दिमाग में जैसे सैकड़ों बम एकसाथ दग रहे थे --- बाप के लिए रो रही है या भतार के लिए --- बार बार यही वाक्य गूंजता दिमाग की रगें फटने लगी थी इसकी गूंज से दम घुटने लगा , बिमला को तो मानो काठ मार गया , बिमला घुटनों में मुंह दिए बैठी थी औरतों के व्यंग बाण उसके कानो में जा कर भी नहीं जा रहे थे बस उसके काष्ठवत शरीर से लग कर जैसे फिसल जा रहे थे , पर मै नहीं सुन पा रही थी बोल ही पड़ी बस करिए आप लोग अभी शव घाट तक भी नहीं पहुंचा अभी तो चुप रहिये , बेचारी लड़की को सांत्वना नहीं दे सकती तो इतना कड़वा बोल तो न बोलिए ,मुझे घूर कर देखते हुए सब मौन हो गई ,कुछ औरतों की आँखों में सहानभूति भी दिखी ,पर जिन आँखों से बिमला ने मुझे देखा वह कैसे बताऊँ उनमें कितनी पीड़ा कितने सवाल जवाब थे , मै तुरंत उठ कर घर आ गई ,मुझे वापस भी जाना था पर एक बार बिमला से भी मिलना चाहती थी माँ भी रोक रही थी इसलिए दो दिन और रुक गई ,रिश्तों का वीभत्स स्वरूप जाना , पर विश्वास ही नहीं कर पा रही थी , मुझे तनाव से रात को नींद ही नहीं आई सो सुबह आँख ही नहीं खुली सारी रात बस बिमला की पथराई आँखे मुझे नजर आई और मै यही सोचती रही - कौन कसूर वार है बिमला तो बच्ची थी उसका क्या अपराध उसे तो कुछ पता भी नहीं ,उस नन्ही बच्ची को क्या पता गलत तो वो था जिसे उसे सहेजना था वह ही उसे तिनके तिनके बिखेरता रहा वह उम्र तो गीली मिटटी की तरह होती है जिस सांचे में ढालो ढल जाती है , मै सही गलत ,अर्थ अनर्थ में झूलती रही रात भर ,बस कुछ देर ही सोई थी इसलिए देर से उठी ,आज वहां हवन था क्रियाकर्म कौन करता इसलिए शुद्धिकरण हवन ही करवा दिया गया ,मै वहां जाना चाहती थी माँ ने मुझसे कहा भी " अब तुम मत जाओ बेटा वहां की कचरपचर सुन कर वही गुनती बुनती रहोगी और दिमाग खराब कर लोगी तबियत अलग खराब हो जायेगी तुम्हारी " ---------"बस थोड़ी देर के लिए जा रही हूँ जल्दी लौट आउंगी अम्मा "
न जाने क्यूँ एक बार मै बिमला को देखना चाहती थी क्या देखना चाहती थी पता नहीं , शायेद उसका चेहरा पढना चाहती थी , या उसकी आँखों में उसके चेहरे में कुछ ढूँढना चाह रही थी ,
हालाँकि वहां पहुँचने में तनिक देर भी हो गई हवन हो चुका था प्रसाद बांटा जा रहा था मै भी अंदर जा कर बैठ गई मोहल्ले की औरतें इकट्ठी थी आपस में बतकुच्चन में जुटी थी कुछ कुछ शब्द बिना प्रयास के मेरे कानों में भी पड़ रहे थे
आधा घंटा हो गया तो मै बस उठने ही वाली थी अचानक सेल फोन बज उठा ,
" बस आ रही हूँ माँ " फोन बंद करते मै तुरंत उठ कर चल दी ,
बाहर आकर कार में बैठने ही वाली थी पीछे से मेरे कंधे को किसी ने छुआ पलट कर देखा तो वो ही थी गीली आँखे लिए चुप खड़ी थी ,मैने उसका हाथ पकड़ा और थपथपाया कोई बोल ही नहीं थे मेरे पास उसके लिए न सांत्वना के न ही भर्त्सना के ही लिए मेरी समझ में नहीं आ रहा था उसे क्या कहूँ , ----एक झटके से कार में बैठ गई और दरवाज़ा बंद कर लिया ,दोबारा मैने पीछे पलट कर उसे देखा भी नहीं न जाने क्यूँ मै खुद नहीं समझ पा रही थी मुझे उससे सहानभूति होनी चाहिए या घृणा ,अजीब उहापोह थी मन खिन्न था ,
आज वापस लौटना था लेकिन सर में इतना दर्द हो रहा था कि जाने की हिम्मत नहीं हुई --मै दवा ले कर लेट गई पर आँख मूंदते ही उन औरतों की आवाज़े मेरे कानों बम की तरह विस्फोट करनें लगी वो आज भी यही उसे यही सब बोल रही थी शायेद सारी उम्र बोलें , ----
----बाप के लिये रो रही है या भतार के लिये --- मैने अपने कानों को तकिये से दबा लिया --- यह शब्द नहीं जहरबुझे तीर थे जिनसे एक रिश्ते की हत्या हो रही थी ---लेकिन फिर वही प्रश्न -- अपराधी कौन ? --- दवा के असर से जरा आँख लगी ही थी कि एक भयावह स्वप्न --और पूरा शरीर पसीने से भीग गया उफ़ -
मेरे चारों तरफ रुदालियों की तरह कुछ काली आकृतियाँ रुदन कर रहीं थी यह वह अभिशप्त आत्माएं थी जो अपनी छाती पीट पीट कर रो रही थी और करुण स्वरों में न्याय की गुहार कर रही थी उनके रुदन का स्वर यही था --
--"सुनो लोगों अगर बाड़ ही खेत खाने लगे तो बेचारी फसल क्या करे तुम ही बताओ " , अगली सुबह --- उस रात फिर मै सो नहीं पाई मै वापस आ गई -
कुछ दिन बाद पता चला बिमला नहीं रही उसने आत्महत्या कर ली पर अपने पीछे एक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गई ---
-------जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो फसल कहाँ जाए ---
---दिव्या शुक्ला !!